विक्रम मिश्र, लखनऊ. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी अपने संगठन विस्तार को लेकर अब अंतिम मुकाम पर है, लेकिन इस बीच भाजपा संगठन चुनाव को लेकर अच्छी खबर भी नहीं आ रही है. मिली जानकारी के मुताबिक क्षेत्रीय अध्यक्ष और मंडल अध्यक्ष में सदस्यता अभियान को मानक नहीं रखा गया है. जिसका परिणाम ये है कि 5 हज़ार सदस्य बनाने वाले कार्यकर्ता अध्यक्ष बनने की दौड़ से बाहर हैं, तो वहीं विधायकों और स्थानीय सांसदों के लोग भाजपा संगठन चुनाव में दावेदारी पेश कर रहे हैं.

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ऐसा हुआ तो नहीं मिल पाएगी सही रिपोर्ट

सन्गठन का मतलब होता है जनप्रतिनिधियों के कार्यकलापों पर निगेहबानी करने वाली एक संस्था. ऐसे में अगर विधायकों और सांसदों की लिस्ट से आए हुए लोग केंद्रीय संगठन को सही रिपोर्ट नहीं भेजेंगे तो इससे पार्टी के कार्यकलाप और छवि पर भी असर देखने को मिलेगा.

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50 फीसदी जिलाध्यक्ष बदल जाएंगे

बुधवार की शाम को हुई बैठक में सभी रिपोर्ट्स को पटल पर रख दिया गया है. 5 बजे शुरू होने वाली बैठक प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के देरी से आने के कारण शाम साढ़े 6 बजे शुरू हुई. जिसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद डॉक्टर रमापति राम त्रिपाठी ने अपनी रिपोर्ट को पटल पर रखा. सूत्रों के द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक इस डोजियर में 50 फीसदी से अधिक ज़िलाध्यक्षों को बदलने की सिफारिश की गई है. जबकि, जिनके दो कार्यकाल पूर्ण हो चुके हैं, ऐसे 15 फीसदी पदाधिकारियों को भी संगठन के अन्य गतिविधियों में कार्य करवाने की संस्तुति की गई है.

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लल्लूराम डॉट कॉम का एनालिसिस क्या है ?

उपरोक्त रिपोर्ट को अगर माना जाता है तो प्रदेश भाजपा का संगठन युवाओं और जातिगत समीकरण के लिहाज से परफेक्ट होगा. साथ ही 2026 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के साथ 2027 के विधानसभा चुनाव की क़िलाबंदी भी शुरू हो जाएगी. अगड़ी जातियों को प्रदेश में तो पिछड़ी जाति के नेताओ को ज़िले मंडल और अन्यत्र स्थान दिया जा सकता है. सबसे अधिक ध्यान पिछड़ी जाति कुर्मी, पासी और दलित बिरादरियों की 12 अन्य जातियों पर है.