पिछले 20 साल से भाजपा की सरकारें मध्य प्रदेश की जनता को इन्वेस्टर्स समिट का नाटक दिखा रही हैं। पहले शिवराज सिंह चौहान और अब डॉक्टर मोहन यादव मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश में लाखों करोड़ रुपये का निवेश लाने का वादा कर रहे हैं। लेकिन न तो कभी शिवराज सिंह चौहान ने और न अब श्री यादव ने जनता के सामने यह बात रखी की पिछली समिट का कितना वादा पूरा हो सका। असल बात यह है कि निवेश के लिए पहली ज़रूरत है निवेशकों का विश्वास। और विश्वास के लिए ज़रूरी है, प्रदेश की चाक चौबंद कानून व्यवस्था। जब तक कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार की रोकथाम नहीं की जाती तब तक निवेश के सिर्फ़ वादे ही प्राप्त हो सकते हैं, असली निवेश नहीं आ सकता।
मध्य प्रदेश देश का इकलौता राज्य है, जहाँ महिलाओं पर सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहे हैं। आदिवासी अत्याचार यहाँ चरम पर है और आदिवासी के सिर पर पेशाब करने जैसी घटना इसी प्रदेश में हुई थी। दलित उत्पीड़न में भी मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड ख़राब है। विश्वास के लिए जो दूसरी चीज़ ज़रूरी है, वह है साफ सुथरा प्रशासन। लेकिन मध्य प्रदेश के अख़बार पढ़ें तो पता चलता है कि यहाँ तो भ्रष्टाचार का मेला लगा हुआ है। यह भाजपा सरकार में ही हो सकता है कि एक पूर्व कांस्टेबल की गाड़ी से करोड़ों रुपया का सोना और नकदी बरामद हो जाए और घटना के एक महीने बाद तक वह गिरफ्तार न किया जा सके। जब प्रदेश की पहचान व्यापम घोटाले, महाकाल लोक घोटाले, आरक्षक भर्ती घोटाला, पटवारी भर्ती घोटाला, नर्सिंग कॉलेज घोटाला और सबसे ताज़ा तरीन अपैक्स बैंक भर्ती घोटाला से होने लगती है तो कोई निवेशक ऐसे भ्रष्टाचार के माहौल में कैसे निवेश करेगा? इसलिए प्रदेश की औद्योगिक नीति पिछली भाजपा सरकारों के 20 वर्षों में इन्वेस्टर्स मीट्स के नाम से शुरू और खत्म हो गई।
आंकड़े गवाह हैं कि इन वर्षों में मध्यप्रदेश औद्योगिक राज्य के रूप में अपने आप को विकसित नही कर पाया है। प्रदेश में सेक्टोरियल डेवलपमेंट बेस्ड इंवेस्टमेंट उद्योग जगत से नहीं आया है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि प्रदेश के नेताओं पर उद्योगपति बहुत ज्यादा विश्वास नहीं करते हैं। इंवेस्टमेंट के लिए सरकार और औद्योगिक घरानों के बीच में एक विश्वास का संबंध होता है क्योंकि जो औद्योगिक घराने अपना कमिटमेंट कर निवेश करते हैं, उसको फायदा भी मिलना चाहिए। वहीं राज्य को औद्योगिक इंवेस्टमेंट से रोजगार (स्किल डेव्लपमेंट), प्रदेश को आय, स्थानियों के लिए डायरेक्ट-इनडायरेक्ट आय का जरिया बनते हैं।
मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के समय भी इन्वेस्टर्स मीट्स के काफी आयोजन हुए। शिवराज जी के समय में लगभग एक दर्जन इन्वेस्टर्स मीट्स हुई। उसी परिपाटी पर अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव चल रहे हैं। पिछले एक साल में मोहन यादव भी कई इन्वेस्टर्स मीट कर चुके हैं। फरवरी 2025 में भी भोपाल में एक इन्वेस्टर्स मीट हो रही है। अब सवाल उठता है कि आखिर इन इन्वेस्टर्स मीट से प्रदेश को हासिल क्या हो रहा है? सरकार दावा तो खूब करती हैं कि इन्वेस्टर्स मीट से हजारों करोड़ का निवेश आयेगा और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन हकीकत में जो हासिल हो रहा है वह नहीं बताया जाता है। सिर्फ कागजों पर आंकड़े बता देने से निवेश नहीं आता है। सरकार का दावा है कि अब तक तीन लाख 75 हजार करोड़ से अधिक के प्रस्ताव मिल चुके हैं। इनसे लगभग 84 हजार रोजगार के सृजन की संभावना है। पिछले 08 माह में उज्जैन, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, रीवा और शहडोल में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव एवं मुंबई, कोयंबटूर, बैंगलुरू और कोलकाता में रोड-शो हुए। सरकार का मानना है कि इनमें विभिन्न सेक्टर्स में 02 लाख 76 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं, जिससे 03 लाख 28 हजार 670 रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
इन्वेस्टर्स समिट एक नाटक-नौटंकी है, इससे मध्यप्रदेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है। इन्वेस्टमेंट तब आता है जब विश्वास का माहौल मिले। केवल भाषणबाजी करने से और विज्ञापन व मीडिया इवेंट्स से निवेश नहीं आता। पिछले 05 सालों से प्रदेश में इन्वेस्टर समिट हो रही हैं लेकिन भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 0.3 प्रतिशत इन्वेस्टमेंट राज्य को मिला है। इन्वेस्टर्स समिट से प्रदेश को कोई फायदा नहीं होने वाला है। सवाल है कि पिछले 18 वर्षों में प्रदेश में हुए ऐसे निवेशक सम्मेलन में आए 6,500 प्रस्तावों में से कितने प्रस्ताव धरातल पर उतरे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आए दिन प्रदेश में बड़े पैमाने पर निवेश के वादों की चर्चा करते रहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि निजी क्षेत्र से आने वाला यह निवेश तो दूर की बात है, केंद्र सरकार से प्रदेश में चल रही विभिन्न योजनाओं के लिए आने वाले पैसे को ही अब तक राज्य सरकार प्राप्त नहीं कर सकी है।
मध्यप्रदेश को चालू वित्त वर्ष में केंद्रीय योजनाओं के लिए केंद्र सरकार की ओर से 37,652 करोड़ रुपया मिलने थे लेकिन अब तक सिर्फ़ 16,194 करोड़ रुपये ही मिले हैं। मध्य प्रदेश में आए तमाम निवेशकों का हम स्वागत करते हैं। मध्य प्रदेश में विश्वास की एक नयी परंपरा बने, हम इस बात का स्वागत करते हैं। 08 दिसंबर 2003 से लेकर अब तक करीब 22 साल में प्रदेश में लगभग 23 साल भाजपा का शासन रहा और 15 महीने (17 दिसंबर 2018 से 23 मार्च 2020 तक) कांग्रेस सत्ता में रही। इस दौरान मैं प्रदेश का मुख्यमंत्री था।
इवेंटबाजी छोड़कर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर ध्यान दें
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव बार-बार प्रदेश में बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करने का दावा कर रहे हैं। इससे पहले भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री भी 22 वर्ष तक इसी तरह के दावे करते रहे। इन दावों की हक़ीक़त प्रदेश की जनता के सामने है। प्रदेश में ‘पैसा दो काम लो’ का सिद्धांत भाजपा ने लागू कर रखा है। इन हालात में निवेश की घोषणा तो की जा सकती है लेकिन वास्तविक निवेश जो कि प्रदेश में रोज़गार को बढ़ाने वाला हो, उसे लाना मुश्किल है। इसलिए मुख्यमंत्री को मेरी सलाह है कि हेडलाइन मैनेजमेंट और इवेंटबाज़ी छोड़कर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पर ध्यान दें, जिससे जनता और निवेशक दोनों का भरोसा प्रदेश के ऊपर बने और प्रदेश में तरक़्क़ी और ख़ुशहाली आए। मैंने अपनी 15 माह की सरकार में प्रदेश के युवाओं को प्राथमिकता से रोजगार मिले इसके लिये कई प्रावधान किये। मैंने हमारी सरकार बनते ही उद्योग नीति में परिवर्तन कर 70 प्रतिशत प्रदेश के स्थानीय युवाओं को रोज़गार देना अनिवार्य किया। युवा स्वाभिमान योजना लागू कर युवाओं को रोजगार मिले इसके लिये कई महत्वपूर्ण निर्णय किये। 15 साल की सरकार में प्रदेश में बेरोज़गारी की क्या स्थिति रही यह किसी से छिपी नहीं। युवा हाथों में डिग्री लेकर नौकरी के लिये दर-दर भटकते रहे। हमने अपनी 15 माह की सरकार में इसी पहचान को बदलने का काम किया, विश्वास का माहौल बनाने का काम किया। साल 2019 में 773.29 एकड़ जमीन उद्योगों के लिए दी गई, जो साल 2018 के मुकाबले 67 फीसदी ज्यादा है। उद्योगों के लिए 7365 करोड़ का निवेश हुआ, जो कि साल 2018 के मुकाबले 52 फीसदी ज्यादा है। 2019 का साल भले ही केंद्र के लिए आर्थिक मंदी के दौर से उबरने से जूझते हुए निकल गया हो लेकिन प्रदेश में औद्योगिक निवेश की सरकारी कोशिशें असरदार साबित हुई। सरकारी आंकड़ों में दावा किया गया था कि प्रदेश में हमारी सरकार के उद्योगों को बढ़ावा देने की कोशिशों के कारण 32 हजार करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव सरकार को मिले थे। सिर्फ इतना ही नहीं, प्रदेश में एक साल पूरे करने में उद्योग में निवेश के लिए 250 से ज्यादा उद्योगपतियों ने हाथ आगे बढ़ाया था।
हमारी सरकार ने पांच सितारा इन्वेस्टर्स मीट की परिपाटी को खत्म किया
हमारी सरकार ने पांच सितारा इन्वेस्टर्स मीट की परिपाटी को खत्म करते हुए मिंटो हॉल में उद्योगपतियों की राउंड टेबल बैठक बगैर किसी तामझाम के आयोजित की। उद्योगपतियों से वन-टू-वन चर्चा कर प्रदेश में निवेश और रोजगार के अवसरों पर बात की और उन्हें होने वाली परेशानियों के बारे में पूछा। प्रदेश में निवेश और रोजगार को लेकर वे सरकार से क्या उम्मीद रखते हैं, उस पर चर्चा की और सुझाव लिए। पिछली सरकार के समय पांच सितारा परंपरा के अनुरूप इन्वेस्टर्स मीट होती थीं, निवेश लाने के नाम पर तामझाम और प्रचार पर करोड़ों रुपए फूंक दिए जाते थे। कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में कहा था कि वह इन्वेस्टर्स मीट का आयोजन कर फिजूलखर्ची नहीं की। पूर्व सरकारों में सिर्फ करोड़ों रुपए के निवेश पर खच किए। इसके बाद उद्योग लगे ही नहीं।
क्या सफल हुई हैं इन्वेस्टर समिट?
इन्वेस्टर समिट को लेकर इससे पहले मध्य प्रदेश में हुए कार्यक्रमों पर नजर डालें तो नतीजे उतने बेहतर नहीं आए हैं, जितने तत्कालीन सरकार की ओर से दावे किए गए थे। 2012 और 2014 में शिवराज सरकार के दौरान हुई ग्लोबल इंवेस्टर समिट के आयोजन और नतीजों को देखें तो अक्टूबर 2012 में इंदौर में हुई ग्लोबल इंवेस्टर समिट में सहारा ग्रुप ने 20 हजार करोड़ के निवेश की डील की थी। ये डील डेयरी और एग्रो सेक्टर प्रोजेक्ट्स में की गई थी, लेकिन ये भी परवान नहीं चढ़ सकी। इसी जीआईएस में महिंद्रा-एंड-महिंद्रा ने 3000 करोड़ की लागत से एसयूवी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने का दावा किया था। बाद में कंपनी ने एमओयू साइन करने से इनकार कर दिया। सूर्या ग्लोबल ने सीमेंट सेक्टर और सूर्यचक्र ग्रुप ने पॉवर सेक्टर में निवेश की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन माइनिंग परमिशन में देरी के चलते प्रोजेक्ट को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। जबकि 2014 में हुई जीआईएस में जेपी ग्रुप ने 35 हजार करोड़ के निवेश की बात की थी, तब जेपी ग्रुप की ओर से माइक्रोचिप मैन्युफैक्चरिंग सेटअप लगाने का दावा किया गया था। पहले फेज में जेपी एसोसिएट्स की ओर से 18 हजार करोड़ निवेश की बात कही गई थी, लेकिन बाद में ये प्रोजेक्ट भी परवान नहीं चढ़ सका। 22-23 अक्टूबर 2016 को इंदौर में ही जीआईएस के आयोजन से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज ने अमेरिका का दौरा किया था लेकिन इस समिट के बाद के नतीजे भी उतने बेहतर नहीं आए जितना दावा सरकार की ओर से किया गया था।
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