Ahmadiyya Muslim: पाकिस्तान (Pakistan) में हिन्दू और सिखों पर अत्याचार की खबरें आए दिन आते रहती है। कट्टरपंथी लगभग 90 फीसदी से ज्यादा हिंदू मंदिरों को जीमींदोज कर दिया है या उसपर कब्जा कर रखा है। इसी बीच मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान (muslim nation pakistan) में अगर मुसलमानों (Muslims) पर ही अत्याचार हो तो आश्चर्य होना स्वभाविक है। पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों के उत्पीड़न का ये सबसे ताजा मामला है। पंजाब प्रांत के दसका में प्रशासन ने अहमदिया मुस्लिमों की 70 साल पुरानी एक मस्जिद के ढहा दिया है। इसका निर्माण देश के पहले विदेश मंत्री जफरुल्लाह खान ने कराया था। यह मस्जिद अहमदिया समुदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाती थी।
प्रशासन ने नोटिस देने के दो दिन बाद बीते गुरुवार को इसे अवैध बताकर तोड़ दिया। प्रशासन का कहना है कि इस मस्जिद की वजह से सड़क पर करीब 13 फीट तक अतिक्रमण हो रखा था।
इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों के उत्पीड़न का मामला एक बार फिर से लाइम लाइट में आ गया है। ऐसे में आइए जानते हैं कि अहमदिया मुस्लिम कौन हैं और मुसलमान आखिरअहमदियों को अपना क्यों नहीं मानते?
सबसे पहले जाने है मामला
इस मस्जिद का निर्माण अहमदिया समुदाय से आने वाले जफरुल्लाह खान ने कराया था, जो 1947 से 1954 तक पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री रहे थे। बंटवारे से पहले उन्होंने वकील के तौर पर अहमदिया मुस्लिमों के हक में आवाज उठाई थी। साथ ही कई ऐतिहासिक फैसलों में उनकी अहम भूमिका रही थी। इस मस्जिद का निर्माण उन्होंने अपने पैतृक शहर दसका, सियालकोट में कराया था, जो 1947 में पाकिस्तान की आजादी से पहले से स्थापित थी।
अहमदिया समुदाय के लोग 15 जनवरी को नोटिस के तहत अतिक्रमण वाली 13 फीट की जगह को हटाने को तैयार थे, बावजूद इसके प्रशासन ने आनन-फनन में ढांचे को गिरा दिया। अब समुदाय के लोगों का कहना है कि गिराया गया ढांचा बंटवारे से पहले का बना था और पुलिस की मौजूदगी में उसे गिराया गया। उन्होंने बताया कि रात के वक्त मस्जिद और आस-पास के इलाके की बिजली काट दी गई और और ढांचे को गिराने का काम किया गया।
क्यों इन्हें अपना नहीं मानता मुस्लिम समाज
अहमदिया समुदाय की शुरुआत मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी। इनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था। इस वजह से कई अहमदिया खुद को कादियानी भी कहते हैं। साल 1889 में गुलाम अहमद ने लुधियाना में खुद को खलीफा घोषित किया था। इसके बाद से ही कई लोग उनके अनुयायी हो गए और धीरे-धीरे अहमदिया जमात बढ़ती चली गई। ये समुदाय सुन्नी मुस्लिमों की ही सब कैटेगरी है, जो खुद को मुसलमान मानते हैं, लेकिन मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते। यह समुदाय मिर्जा गुलाम अहमद को अपना गुरु मानता है और इस बात में यकीन रखता है कि वही मोहम्मद के बाद उनके नबी या मैसेंजर हुए थे। पूरी दुनिया में इस्लाम को मानने मुसलमान मोहम्मद को ही आखिरी पैगंबर मानते रहे। यही बात अहमदियों को बाकी मुस्लिमों से अलग बनाती है। पाकिस्तान के मुस्लिम तो इन्हें काफिर मानते हैं। इसके अलावा और भी कई मुस्लिम देशों में अहमदियों को मुसलमान नहीं माना जाता।
हज जाने पर पाबंदी
पूरी दुनिया में मुस्लिम आबादी का करीब एक फीसदी हिस्सा अहमदियों का है, जिनकी कुल संख्या 2 करोड़ के आस-पास मानी जाती है। अकेले पाकिस्तान में ही 50 लाख के करीब अहमदिया मुस्लिम रहते हैं। इसके बाद नाइजारिया और तंजानिया जैसे देशों का नंबर आता है। सऊदी अरब भी इन्हें मुस्लिम नहीं मानता, यही वजह है कि इस समुदाय के हज जाने पर भी पाबंदी है।
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