प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज महाकुंभ में जूना अखाड़े से 5 हजार नागा साधु बन रहे हैं। सभी ने पूरे विधि विधान के साथ शनिवार को जीते जी अपना और अपने सात पीढ़ियों का पिंडदान किया। पिंडदान करने के बाद 5 हजार नागा साधुओं की अवधूत बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। संगम के घाट पर साधकों के लिए कुल 17 पिंड बनाए गए थे। जिनमें में 16 पिंड में साधकों ने अपने सात पीढ़ियों का पिंडदान किया। वहीं एक पिंड में उन्होंने खुद का पिंडदान किया।

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धर्म का रक्षक कहलाते हैं नागा साधु

जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज ने साधकों को मूल मंत्र दिया। जिसके बाद उनकी कठिन साधना चल रही है। मौनी अमावस्या के मौके पर सभी साधकों को नागा साधु बनाया जाएगा। महाकुंभ में इस बार 20 से 25 हजार नागा साधु बनाए जाने हैं। सभी 13 अखाड़ों में सबसे बड़ा जूना अखाड़ा है। जिसमें लगभग 5 लाख नागा साधु और संन्यासी है। नागा साधुओं को धर्म का रक्षक कहा जाता है।

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नागा साधु बनने के तीन चरण

नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और कठिनाई से भरी होती है। साधकों को पंथ में शामिल होने के लिए तकरीबन 6 साल का समय लगता है। नागा साधु बनने के लिए साधकों को तीन स्टेज से होकर गुजरना पड़ता है। जिनमें से पहला महापुरुष, दूसरा अवधूत और तीसरा दिगंबर होता है। अंतिम संकल्‍प लेने तक नागा साधु बनने वाले नए सदस्य केवल लंगोट पहने रहते है। कुंभ मेले अंतिम संकल्‍प दिलाने के बाद वे लंगोट का त्याग कर जीवन भर दिगंबर रहते है।

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चार प्रकार के नागा साधु

प्रयाग में होने वाले कुंभ से दीक्षित नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है क्योंकि ये संन्यास के बाद राजयोग की कामना रखते हैं।
उज्जैन कुंभ से दीक्षा लेने वाले साधुओं को ‘खूनी नागा’ कहा जाता है। इनका स्वभाव काफी उग्र होता है। हरिद्वार दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहते है, ये शांत स्वभाव के होते हैं। नाशिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले साधु को ‘खिचड़ी नागा’ कहलाते हैं। इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है।