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प्रयागराज. लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा, “जहां तक ‘लिव-इन संबंध’ का सवाल है, इसे कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है. लेकिन युवा लोग ऐसे संबंधों की ओर आकर्षित होते हैं, क्योंकि युवा, चाहे वह पुरुष हो या महिला, अपने साथी के प्रति अपने उत्तरदायित्व से आसानी से बच सकते हैं. इसलिए ऐसे संबंधों के प्रति उनका आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है.” ये बात हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कही.
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बता दें कि एक युवती और एक युवक 6 साल तक लिव-इन रिलेशन में रहे. इस दौरान लड़की और लड़के दोनों की सहमति से शारीरिक संबंध भी बने. जब लड़के ने युवती से शादी नहीं की तो उसने रेप का केस कर दिया. जिसके बाद मामला हाईकोर्ट में पहुंचा था. इस दौरान कोर्ट ने सुनवाई करते हुए वाराणसी जिले के आकाश केशरी को जमानत दे दी. साथ ही युवती से कोर्ट ने ये भी पूछा है कि 6 साल तक साथ रहने के बाद रेप का आरोप लगाने और शिकायत की पीछे की वजह क्या है?
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इस दौरान न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव ने ये भी कहा कि हम बदलते समाज में रहते हैं जहां परिवार, समाज या कार्यस्थल पर युवा पीढ़ी का नैतिक मूल्य और सामान्य आचरण बदल रहा है. समय आ गया है कि समाज में नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें कुछ रूपरेखा तैयार करनी चाहिए और समाधान निकालना चाहिए.
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मुकदमे की यह कहानी मनगढ़ंत है, क्योंकि पीड़िता बालिग है और दोनों के बीच परस्पर सहमति से शारीरिक संबंध बने. पीड़िता करीब 6 साल तक आरोपी के साथ लिव इन संबंध में रही और गर्भपात कराने का आरोप झूठा है. वकील ने कहा कि आरोपी युवक ने कभी शादी का वादा नहीं किया और दोनों पारस्परिक सहमति से इस संबंध में रहे.
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