पिछले कुछ दिनों में देश भर में दहेज उत्पीड़न कानून पर बहुत चर्चा हुई है. सुप्रीम कोर्ट(Suprem Court) से लेकर कई उच्च न्यायालयों ने इस कानून के बेजा प्रयोग पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि यह कानून महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के बजाय पुरुषों के उत्पीड़न का हथियार बन जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए था. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दहेज उत्पीड़न कानून के कुछ प्रावधानों के खिलाफ एक जनहित याचिका पहुंची, जिसे अदालत ने 2 मिनट के अंदर खारिज कर दिया. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के.वी. चंद्रन की बेंच ने कहा कि आप इस मामले में संसद में जाएं क्योंकि संसद का काम है किसी भी कानून को बनाना और उसे खत्म करना संसद का काम है.

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याचिकाकर्ता रूपसी सिंह ने कहा कि कानून के भाग 2,3 और 4 को खत्म करना चाहिए. भाग 2 दहेज की परिभाषा देता है, भाग 3 दहेज लेने और देने के मामलों में क्या हो सकता है और भाग 4 दहेज की मांग पर सजा देता है. रूपसी सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस कानून के कुछ प्रावधान अवैध हैं और उन्हें खत्म करना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह जनता की भावना है, जिसे मैंने अर्जी दाखिल की है. हालांकि, अदालत ने दो मिनट के अंदर उनकी दलीलों से सहमत नहीं होकर कहा, ‘याचिका डिसमिस है. आप संसद से यह बात करें.’

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दरअसल , बेंगलुरु में रहने वाले एक इंजीनियर अतुल सुभाष ने दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मुकदमे से तंग आकर खुदकुशी कर ली थी. उन्होंने अपनी आत्महत्या से पहले एक वीडियो भी शेयर किया था, जिसमें उन्होंने दहेज उत्पीड़न कानून पर सवाल उठाया था. उनका कहना था कि आखिर मेरी सैलरी इतनी है तो मैं क्यों दहेज लूंगा. इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं, जिन्हें लेकर कई उच्च न्यायालयों ने सवाल उठाए हैं.