‘मध्य प्रदेश’ को भारत का दिल कहा जाता है। इसे ऐसे ही भारत का दिल नहीं कहा जाता। यहां प्राकृतिक सौंदर्य के साथ कई ऐतिहासिक किस्से भी हैं। जिनके रहस्य को जानने देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं। मध्य प्रदेश हरियाली, पुरानी इमारतें, इतिहास और पौराणिक कथाओं के साथ मंदिरों को लेकर भी जाना जाता है। शिवरात्रि आ रही है। इसी बीच आज हम मध्य प्रदेश के ऐसे मंदिरों के बारे में जानेंगे, जहां दर्शन मात्र से ही सारे बिगड़े काम बन जाते हैं।
वैसे तो मध्यप्रदेश में अनेक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, जहां दुनिया भर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। लेकिन आज हम ऐसे मंदिर के बारे में जानेंगे, जहां आपको एक न एक बार जरूर जाना चाहिए।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अगर हम उज्जैन शहर की बात करें तो इसका पुराणों और प्राचीन धर्म ग्रन्थों में ‘उज्जयिनी’ और ‘अवन्तिकापुरी’ के नाम से उल्लेख किया गया है। इस शहर में मंगल ग्रह का जन्मस्थान यानी मंगलश्वेर भी यहीं स्थित है। देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे अधिक प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है।
ऐसे बने ‘शिव’ से ‘महाकाल’
माना जाता है कि, प्राचीन समय में महाराजा चंद्रसेन नाम के एक राजा थे, जो उज्जैन में राज्य किया करते थे। राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे। इसके साथ भी उनकी प्रजा भी भगवान शिव की पूजा किया करती थी। एक बार पड़ोसी राज्य से राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर आक्रमण कर दिया। जिसमें दूषण नाम के राक्षस ने राजा की प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जिसके चलते पीड़ित प्रजा ने भगवान शिव का आह्वान किया। प्रजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए। इसके बाद राक्षस का वध किया। कहा जाता है कि, प्रजा की भक्ति को देख और उनके अनुरोध पर भगवान शिव हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में ही विराजमान हो गए।
महाकुंभ का मेला
उज्जैन में प्रत्येक बारह साल में एक बार सिहंस्थ महाकुम्भ का मेला लगता है। जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त आते हैं। अब उज्जैन पहुंचने के मार्ग की बात करें तो अगर आप वायुमार्ग से आ रहे हैं तो उज्जैन जाने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट यानी इंदौर आए। यहां से उज्जैन से करीब 58 किलोमीटर है। आप बाय कार या बस भी फिर यहां तक पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही अगर हम रेलमार्ग की बात करे तो उज्जैन लगभग देश के सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है। आप आसानी से यहां आ सकते हैं। इसके साथ ही आप सड़कमार्ग से भी उज्जैन में नैशनल हाइवे 48 और नैशनल हाइवे 52 से आ सकते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

नर्मदा नदी के किनारे स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, चौथा ज्योतिर्लिंग है। यह इंदौर से करीब 80 किमी दूर और खंडवा जिले में है। इसके साथ ही यहां अमलेश्वर ज्येतिर्लिंग भी है। वैसे तो इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की गई है।
यह है मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि, ओंकारेश्वर मंदिर वाली पहाड़ी पर मांधाता नाम के एक राजा ने कठोर तप किया था। जिसके चलते इस पर्वत को मांधाता पर्वत भी कहा जाता है। वहीं राजा के तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वे यहां प्रकट हुए। इसके बाद राजा ने भगवान शिव जी से वरदान के रूप में उन्हें यहीं वास करने के लिए कहा। भगवान शिव जी अपने भक्त की इच्छा पूरी की और वे ज्योति स्वरूप में यहां स्थापित शिवलिंग में समा गए। बताया जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है। यानी ये स्वयं प्रकट हुआ है।
इसे पहुंचे यहां
इस मंदिर में दर्शन के लिए आपको किसी खास दिन या फिर कोई समय लेने की जरूरत नहीं है। यहां आप सालभर में कभी भी आ सकते हैं। पूरे वर्ष ये मंदिर भक्तों के लिए खुला रहता है। इसके साथ ही मंदिर के पास ही मां नर्मदा नदी बहती है। अब बात करते हैं की यहां तक कैसे पहुंचे। तो इसके लिए आप इंदौर आए। इंदौर यहां से 80 किमी दूर। आप इंदौर देश के सभी बड़े शहरों से वायु मार्ग, छोटे शहरों से रेल मार्ग और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। इंदौर आने के बाद आप यहां से बस या पर्सनल टैक्सी करके मंदिर तक जा सकते हैं।
भोजपुर मंदिर

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर भोजपुर में भगवान शिव की विशालकाय शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर को भोजपुर मंदिर के नाम से जाना है। यह मंदिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को अधूरा शिव मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण पूर्व परमार वंश के राजा भोज ने 1010 – 1053 ईं. में करवाया था। इस मंदिर की खासियत है कि यहां मौजूद शिवलिंग एक पत्थर से बनी हुई।
हालाँकि कुछ किंवदंतियों के मुताबिक इस स्थल के मूल मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई मानी जाती है।
आज भी अधूरा है एक पत्थर से बना यह शिवलिंग का मंदिर
इस मंदिर को अधूरा होने का कारण बताया जाता है कि इस मंदिर को एक ही रात में बनाया गया था। जैसे ही सूर्योदय हुआ वैसे ही इसका कार्य रोक दिया गया।यह मंदिर उस वक्त के बाद आज तक पूरा नहीं बना है। सूरज के उगने तक गुंबद तक का ही काम हो पाया था। भोजपुर मंदिर का अधूरा गुंबद इस बात का प्रतीक है कि यह मंदिर वर्तमान से अधूरा है।
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