अमित पांडेय, खैरागढ़. जिले के गंडई स्थित मां नर्मदा के ऐतिहासिक मंदिर में चार दिवसीय नर्मदा महोत्सव की भव्य शुरुआत हो गई है. यहां माघी पूर्णिमा के अवसर पर हर साल मेला लगता है और इसकी पौराणिक मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है. इस मंदिर में स्थित पवित्र कुंड को लेकर एक रोचक किंवदंती जुड़ी हुई है, जो भक्तों की आस्था को और प्रगाढ़ बनाती है.

जानिए क्या है मंदिर की मान्यता

मान्यता है कि खैरागढ़ रियासत के दौर में रुक्कड़ स्वामी नामक एक तपस्वी संत यहां निवास करते थे. वे मां नर्मदा के परम भक्त थे और प्रत्येक माह अमरकंटक जाकर नर्मदा स्नान व पूजन करते थे. उनकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर मां नर्मदा ने स्वयं खैरागढ़ में प्रकट होने का निश्चय किया. मां नर्मदा जब अमरकंटक से खैरागढ़ के लिए निकली तो रास्ते में खैरा नामक गांव से होकर गुजरीं. उसी समय गांव के एक गौठान में चरवाहा अपने मवेशियों को एकत्र कर रहा था. तभी एक राहगीर ने चरवाहे से गांव का नाम पूछा. चरवाहे ने उत्तर दिया “यह ग्राम खैरा है.” संयोगवश उसी समय गौठान से एक गाय भागी, जिसका नाम भी ‘नर्मदा’ था. चरवाहे ने आवाज लगाई – अरे नर्मदा! कहां जा रही हो? गांव का नाम और अपना नाम एक साथ सुनकर मां नर्मदा ठिठक गई. उन्होंने इस स्थान को ही खैरागढ़ मान लिया और यहीं प्रकट हो गई. देखते ही देखते जमीन से जलधारा फूट पड़ी और एक पवित्र कुंड का निर्माण हुआ. इसी स्थान पर मां नर्मदा का भव्य मंदिर भी बनाया गया, जो आज श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है.

हर साल दूर-दूर से आते हैं लाखों श्रद्धालु

माघी पूर्णिमा के अवसर पर इस मंदिर में हर साल भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. खैरागढ़ जिला बनने के बाद इस मेले की भव्यता और भी बढ़ गई है. प्रशासन द्वारा भक्तों की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिसमें आकर्षक लाइटिंग एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम, सुरक्षा व्यवस्था और चिकित्सा सुविधाएं, श्रद्धालुओं के लिए विशेष पूजा-अर्चना की व्यवस्था की जाती है. हर साल इस मेले में लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से मां नर्मदा के दर्शन करने और इस ऐतिहासिक स्थल की पवित्रता का अनुभव करने आते हैं. भक्तों की बढ़ती संख्या इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता को और अधिक प्रमाणित करती है.