लखनऊ. नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने सदन में अंग्रेजी हटाकर उर्दू भाषा शामिल करने की मांग की. जिस पर सीएम योगी ने सपा पर करारा हमला बोला. सीएम योगी ने कहा, ये लोग अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूल में पढ़ाएंगे. दूसरे के बच्चे के लिए अगर वह सुविधा सरकार देना चाहती है तो कहते हैं कि इसको उर्दू पढ़ाओ. यानी ये बच्चों को मौलवी बनाना चाहते हैं. देश को कठमुल्लापन की ओर ले जाना चाहते हैं. यह नहीं चलेगा. यह समाजवादियों का दोहरा चरित्र है. जिस पर अखिलेश यादव ने सीएम योगी पर पलटवार किया है.

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सोशल मीडिया (X) पर पोस्ट करते अखिलेश यादव ने कहा, दूसरों पर भाषागत प्रहार करके समाज में भेद उत्पन्न करने वालों में यदि क्षमता हो तो यूपी में ऐसे वर्ल्ड क्लास स्कूल विकसित करके दिखाएं कि लोग बच्चों को पढ़ने के लिए बाहर न भेजें. लेकिन इसके लिए विश्व दृष्टिकोण विकसित करना होगा, जो आज तक आसपास के एक-दो देश ही गये हों. उनका नज़रिया कैसे इतना बड़ा हो सकता है कि वो इतना बड़ा काम कर पाएंगे.

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वहीं सपा नेता शिवपाल यादव ने भी सीएम योगी पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री जी, असली दोहरा चरित्र तो आपकी सरकार का है. जो खुद अरबों रुपये के इवेंट और प्रचार पर खर्च करती है, लेकिन गरीब के बच्चे की शिक्षा का बजट काट देती है. आपको उर्दू से इतनी परेशानी क्यों है? क्या संविधान में हर भाषा को सम्मान देने की बात नहीं कही गई? समाजवादियों ने हमेशा सबको साथ लेकर चलने की राजनीति की है, न कि नफरत फैलाने की.

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दरअसल, यूपी विधानसभा में मंगलवार को अंग्रेजी और उर्दू को लेकर जमकर बहस हुई. सीएम योगी गुस्से में नजर आए. उन्होंने समाजवादीपार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की विभिन्न बोलियों भोजपुरी, अवधी, ब्रज और बुंदेलखंडी को इस सदन में सम्मान मिल रहा है. हमारी सरकार इन सभी के लिए अलग-अलग अकादमियां बनाने की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ा रही है.

यह सदन केवल शुद्ध साहित्यिक और व्याकरण के विद्वानों के लिए नहीं है. अगर कोई हिंदी में धारा प्रवाह नहीं बोल सकता है, तो उसे भोजपुरी, अवधी, ब्रज या बुंदेलखंडी में भी अपनी बात रखने का अधिकार मिलना चाहिए. यह क्या बात हुई कि कोई भोजपुरी या अवधी न बोले और उर्दू की वकालत करे? यह बहुत विचित्र बात है. समाजवादियों का चरित्र इतना दोहरा हो गया है कि वे अपने बच्चों को अंग्रेजी पब्लिक स्कूल में भेजेंगे और दूसरों के बच्चों को गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने की सलाह देंगे. जहां, संसाधन भी नहीं हैं. ये उनके बच्चों को मौलवी बनाना चाहते हैं.