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रविंद्र कुमार भारद्वाज, रायबरेली. कांग्रेस का पारंपरिक गढ़, एक बार फिर चर्चा में है. लोकसभा में विपक्ष के नेता और रायबरेली से सांसद राहुल गांधी ने अपने हालिया दौरे के दौरान एक बयान दिया, जिसने राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है. 20 फरवरी को बछरावां में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, रायबरेली में दो सांसद हैं. इस बयान पर कुछ लोगों ने तंज कसा कि अगर वास्तव में दो सांसद हैं, तो कुछ का दावा है कि यहां “तीन से चार सांसद” हैं. फिर भी, इन दावों के बीच यह सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस का भविष्य रायबरेली में क्यों गर्त की ओर जाता दिख रहा है.
राहुल गांधी ने अपने संबोधन में केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों को उठाया. इसी दौरान उन्होंने रायबरेली की राजनीतिक स्थिति का जिक्र करते हुए “दो सांसद” वाली बात कही. जानकारों का मानना है कि उनका इशारा उनके और उनकी मां सोनिया गांधी की ओर हो सकता है, जो पहले रायबरेली से सांसद रह चुकी हैं और अब राज्यसभा में हैं. हालांकि, कुछ लोगों ने इसे मजाक में लिया और कहा कि अगर परिवार के प्रभाव को जोड़ा जाए, तो “तीन से चार सांसद” की बात भी बन सकती है, जिसमें प्रियंका गांधी का नाम भी शामिल हो सकता है. लेकिन इस बयान ने कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए. विपक्षी नेताओं और आलोचकों ने तंज कसा कि “सांसदों की संख्या चाहे जितनी हो, कांग्रेस का भविष्य रायबरेली में कमजोर ही दिख रहा है.”
विधानसभा में कमजोर प्रदर्शन
रायबरेली लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन विधानसभा स्तर पर उसकी स्थिति चिंताजनक है. 2022 के विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की पांच सीटों बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार में से 4 पर समाजवादी पार्टी (सपा) और एक पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत हासिल की. कांग्रेस का कोई प्रत्याशी मुख्य मुकाबले में नहीं रहा और तीन सीटों पर उसकी जमानत तक जब्त हो गई. यह स्थिति तब है, जब राहुल गांधी खुद इस क्षेत्र से सांसद हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि “राहुल कहते हैं दो सांसद हैं, लेकिन विधानसभा में कांग्रेस का कोई वजूद नहीं. यह तो गांधी परिवार की साख का सवाल है, फिर भी पार्टी गर्त में जा रही है.”
बदलता राजनीतिक परिदृश्य
भाजपा और सपा की बढ़ती ताकत ने रायबरेली में कांग्रेस के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं. भाजपा ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बनाई है और हिंदुत्व के साथ विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाया है. वहीं सपा ने इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के साथ सहयोग तो किया, लेकिन विधानसभा स्तर पर उसका दबदबा कांग्रेस को कमजोर कर रहा है. राहुल गांधी ने अपने दौरे में मायावती पर भी निशाना साधा और कहा, अगर मायावती हमारे साथ होतीं, तो भाजपा हार जाती. इस बयान से साफ है कि कांग्रेस गठबंधन की ताकत को मजबूत करना चाहती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और कहती है.
संगठन की कमजोरी और आलोचना
कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या उसका संगठनात्मक ढांचा है. बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की कमी और स्थानीय नेतृत्व का अभाव पार्टी को कमजोर कर रहा है. एक पूर्व कांग्रेस कार्यकर्ता रमेश यादव ने कहा, “राहुल जी आते हैं, भाषण देते हैं, लेकिन संगठन में जान नहीं डाल पाते. दो सांसद कहने से क्या होगा, जब जमीनी स्तर पर पार्टी खत्म हो रही है?” भाजपा नेता ने चुटकी लेते हुए कहा, “राहुल जी को लगता है कि सांसदों की गिनती से कांग्रेस का भविष्य चमक जाएगा. हकीकत यह है कि रायबरेली में भी उनका रंग फीका पड़ रहा है.”
रायबरेली में कांग्रेस का भविष्य गांधी परिवार की साख पर टिका है. राहुल और प्रियंका गांधी की सक्रियता से कार्यकर्ताओं में उत्साह तो दिखता है, लेकिन यह वोटों में तब्दील नहीं हो रहा. अगर कांग्रेस संगठन को मजबूत करें, स्थानीय मुद्दे किसानों की समस्याएं और बेरोजगारी पर काम करें और गठबंधन को प्रभावी बनाए, तो वह अपनी खोई जमीन वापस पा सकती है. लेकिन मौजूदा हालात में आलोचकों का मानना है कि “सांसदों की गिनती बढ़ाने से ज्यादा, कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है.”
राहुल गांधी का “दो सांसद” वाला बयान मजाक और बहस का विषय बन गया है, लेकिन यह कांग्रेस की कमजोरियों को भी उजागर करता है. रायबरेली में गांधी परिवार की विरासत अभी बरकरार है, लेकिन बदलते राजनीतिक रंग और संगठन की कमजोरी इसे गर्त की ओर ले जा रही है. 2029 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए इस गढ़ को बचाने की बड़ी चुनौती होगा. तब तक, “दो सांसद हैं या चार” से ज्यादा जरूरी यह है कि कांग्रेस अपने भविष्य को कैसे सवांरती है.
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