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Parenting Tips in Hindi: विशाल (बदला हुआ नाम) के बच्चे कुछ समय से स्ट्रेस में थे. न तो ये बच्चे किसी तरह का डिसीजन ले पा रहे थे ना ही वे पैरेंट्स की बात ही मान रहे थे. शहर में एक मनोरोग के डॉक्टर को दिखाया. उसने बच्चों की काउंसलिंग की निकल कर आया कि बच्चे ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंटिंग का शिकार थे. शहर में डॉक्टर्स के पास इस तरह के मरीज बढ़ रहे हैं. ये एक अलग तरह की पैरेंटिंग से हो रहा है. ये पैरेंटिंग है ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंटिंग. अगर आप भी इस तरह की पैरेंटिंग अपने बच्चों के साथ कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए.
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क्या है ओवर पैरेंटिंग
ओवर पैरेंटिंग परवरिश की ही एक शैली है. जिसमें माता-पिता बच्चों के जीवन में जरूरत से ज्यादा ही इंटरफेयर करते हैं. वे हर वक्त अपने बच्चे के चारों ओर मंडराते रहे हैं. उन्हें हर वक्त इस बात की चिंता रहती है कि उनके बच्चे को कुछ हो ना जाए. वे बच्चों को लेकर हर वक्त अलर्ट रहते हैं और हर तरह से उन्हें प्रोटेक्ट रखने की कोशिश करते हैं. बच्चा अगर गिर जाए तो दौड़ कर उसको उठा लेंगे. यानि कि जरूरत से अधिक केयर वे बच्चों की करते हैं. इसके अलावा ऐसे पेरेंट अपने बच्चे को लेकर ओवर-प्रोटैक्टिव होते हैं. वे उनकी सुरक्षा और बेहतर भविष्य के लिए हमेशा उन्हें डांटते और टोकते रहते हैं कि तुम्हें ये नहीं करना चाहिए या ये करना चाहिए. उन्हें उनके दोस्तों या दादा-दादी के साथ भी छोड़ना नहीं चाहते हैं. दरअसल उन्हें यह डर सताता है कि कहीं उनके बच्चों को कुछ परेशानी न हो.
ये हैं लक्षण
ओवर पेरेंटिंग में पैरेंट्स कोशिश करते हैं कि उनका बच्चा सही फैसले ले. उन्हें किसी भी तरह की चोट से बचाना, उन्हें किसी भी तरह के इनोवेशन या नई चीज करने से रोकना और उन्हें अपने अनुसार रखने की कोशिश करना. ताकि वह काम आपकी इच्छानुसार करें. इसके अलावा अगर आपका बच्चा कमरा गंदा रखता है, तो उसे सफाई सिखाने की बजाय खुद क्लीनिंग करना, उसके प्रोजेक्ट पूरे करना, उसकी परेशानी को अपना समझना, उसकी गलतियों को नजरअंदाज करना, फेल होने के लिए कोई जगह ही ना छोड़ना और बच्चे को हर खतरे से बचाकर रखना. ये ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंटिंग के लक्षण है. अगर आप अपने बच्चे के लिए ये सब चीजें करते हैं तो आपको अपने पैरॅटिंग स्टाइल को लेकर सोचने की जरूरत है.
ये भी हो सकते हैं लक्षण
- बच्चे की एक्टिविटी पर नजर रखना
- हर समस्या का समाधान खुद निकालना
- बच्चे को चोट न लग जाए, इस सोचकर काम नहीं करने देना
- बच्चे की असफलताओं को स्वीकार न करना
इन तरह करें बचाव
- खुद के काम खुद से करना सिखाएं
- उन्हें जिम्मेदारियों के बारे में बताएं
- बच्चों को कम्फर्ट जोन से बाहर रखें
- असफलताओं को स्वीकार करें
- बच्चे को उम्र के हिसाब से काम लेने दें
- बच्चे को अपनी गलतियों से सीखने दें
- बच्चे के हर डिसीजन को खुद न लें
ये हो सकते हैं नुकसान
लर्निंग स्किल्स डेवलप नहीं हो पाते
बच्चे को गलती नहीं करने दे रहे हो तो उनको गलतियों से सबक लेने का अवसर भी नहीं मिल पाएगा. जिससे उसका स्किल डेवलप नहीं होगा.
कॉन्फिडेंस होता है कम
आपकी ओवर पैरेंटिंग की वजह से बच्चे खुद से निर्णय लेना नहीं सीख पाते. इस तरह धीरे धीरे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है.
डिसीजन मेकिंग की होती है कमी
बच्चे को कोई भी फैसला खुद नहीं लेने दे रहे हो तो बच्चे में डिसीजन मेकिंग की क्षमता नहीं आ पाती. ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंट्स के बच्चे निर्णय लेने में भी पिछड़ सकते हैं.
एंग्जायटी का रहता है खतरा
ओवरप्रोटेक्टिव पैरेंट्स परवरिश और माहौल के साथ बच्चे में धीरे-धीरे एंग्जायटी की समस्या होने लगती है.