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रविंद्र कुमार भारद्वाज, रायबरेली. कभी गांधी-नेहरू परिवार का अभेद्य किला माना जाने वाला रायबरेली आज कांग्रेस के लिए चुनौतियों से भरा हुआ है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के हालिया दो दिवसीय दौरे (20-21 फरवरी) के बाद यह सवाल फिर से उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अपने इस पारंपरिक गढ़ में पुरानी ताकत बरकरार रख पाएगी या आने वाले चुनावों में उसे नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. जिले की सियासी तस्वीर और कांग्रेस की मौजूदा स्थिति इसकी पड़ताल करती है.
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बता दें कि रायबरेली को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. फिरोज गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक, इस सीट ने गांधी परिवार को बार-बार संसद पहुंचाया. 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को हराकर इस परंपरा को कायम रखा. हालांकि, जमीनी हकीकत अब पहले जैसी नहीं रही. 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली की पांच विधानसभा सीटों में से 4 पर समाजवादी पार्टी (सपा) और एक पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. तीन सीटों पर तो कांग्रेस के प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा सके. यह स्थिति कांग्रेस के कमजोर संगठन और स्थानीय नेतृत्व की कमी को उजागर करती है.
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संगठन की कमजोरी और सपा पर निर्भरता
राहुल गांधी ने अपने हालिया दौरे में बछरावां में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस की विचारधारा सत्य, अहिंसा और सामाजिक न्याय को जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी है. लेकिन स्थानीय स्तर पर कांग्रेस का संगठन लगभग निष्क्रिय सा दिखता है3. जानकारों का कहना है कि जिले में कांग्रेस की गतिविधियां सपा के कार्यकर्ताओं के भरोसे ज्यादा चल रही हैं. एक स्थानीय पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “रायबरेली में कांग्रेस का कोई मजबूत बूथ-स्तरीय ढांचा नहीं है. सपा के सहयोग के बिना 2024 की जीत भी मुश्किल थी.”
बीजेपी की बढ़ती चुनौती
बीजेपी ने रायबरेली में अपनी पैठ मजबूत करने के लिए कमर कस ली है. 2019 में दिनेश प्रताप सिंह ने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी, जब जीत का अंतर घटकर 17.43% रह गया था. बीजेपी का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है. 2014 और 2019 में उसने कांग्रेस को कांटे की टक्कर दी. इसके अलावा, कांग्रेस के कई बड़े नेता जैसे अदिति सिंह, राकेश सिंह और मनोज पांडेय बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जिससे पार्टी की जमीनी ताकत और कमजोर हुई है. बीजेपी अब रायबरेली को अपना अगला लक्ष्य मान रही है, खासकर तब जब अमेठी पहले ही उसके कब्जे में आ चुकी है.
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के लिए रायबरेली में भविष्य अनिश्चित है. राहुल गांधी की सक्रियता और गांधी परिवार का भावनात्मक जुड़ाव अभी भी मतदाताओं को प्रभावित करता है, जैसा कि उनके हालिया दौरे में जनता दरबार और रेल कोच फैक्ट्री के दौरे से दिखा. लेकिन संगठन की कमजोरी और बीजेपी की आक्रामक रणनीति इसे कठिन बना रही है. 2027 के विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन बनाए रखती है, तो वह कुछ हद तक अपनी स्थिति बचा सकती है. हालांकि, लोकसभा स्तर पर बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए उसे जमीनी स्तर पर मजबूत नेतृत्व और कार्यकर्ताओं की जरूरत होगी.
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रायबरेली में कांग्रेस का अस्तित्व अब गांधी परिवार की साख और सहयोगी दलों पर टिका है. राहुल गांधी के दौरे से कार्यकर्ताओं में उत्साह तो जगा, लेकिन संगठनात्मक ढांचे के अभाव में यह कितना टिकेगा, यह सवाल बना हुआ है. आने वाले चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपने गढ़ को कितना मजबूत कर पाती है और बीजेपी की चुनौती का जवाब कैसे देती है. फिलहाल, रायबरेली कांग्रेस के लिए एक संकटग्रस्त किला है, जिसे बचाने की लड़ाई अभी बाकी है.
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