Maha Shivratri Special 2025: ‘महाशिवरात्रि’ हिंदू धर्म का बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना कर उनकी शादी की बारात निकाली जाती है। भगवान शिव दूल्हा बन मां पार्वती के साथ विवाह करते हैं महाशिवरात्रि का पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त उपवास रखते है और भगवान शिव का जलाभिषेक कर आशीर्वाद लेते हैं। वहीं देश भर में विभिन्न स्थानों पर भगवान शिव के मंदिर हैं। तो मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग है, इसके अलावा अगर आप भी इस शिवरात्रि में भगवान शिव के मंदिर का प्लान बना रहे हैं, तो आप इन शिव मंदिरों में जरूर जाएं। यहां आपकी हर मुराद पूरी होगी।

खजुराहो का कंदरिया महादेव मंदिर

मध्य प्रदेश का खजुराहो महान पुरातात्विक विरासत और स्थापत्य कला का केंद्र है। यहां वर्षों पुराने कई मंदिर हैं। ऐसे में अगर आप ‘महाशिवरात्रि’ पर भगवान भोलेनाथ के मंदिर आना चाहते हैं तो आप ‘कंदरिया महादेव मंदिर’ जरूर जाए। यह खजुराहो के पश्चिमी मंदिर समूह का एक प्रमुख मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग विराजमान है। यह शिवलिंग श्वेत संगमरमर से बनी हुई है। इतना ही नहीं इस मंदिर की दीवारों पर बहुत ही सुंदर नक्काशी बनाई गई है। जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है।

अब इस मंदिर से जुड़ी कहानी की बात करे तो वो बेहद ही रोचक है। कहते है कि, महमूद गजनवी को पराजित करने के बाद भोलेनाथ के उपासक चंदेल राजा ने यह मंदिर बनवाया था। कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक मंदिर है। यह मंदिर ऊंची जगह पर बनाया गया है। जिसमें दो तोरण देखने के लिए मिलते हैं।

पचमढ़ी का जटाशंकर मंदिर

हम सब जानते हैं भगवान शिव का पहला घर कैलाश पर्वत है। लेकिन क्या आप जानते है कि, भोलेनाथ का दूसरा घर मध्य प्रदेश में है। जी हां, मध्यप्रदेश के सतपुड़ा की वादियों में भोलेनाथ का दूसरा घर है। जंगलों में घिरे पचमढ़ी की वादियों में जटाशंकर धाम स्थित। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भस्मासुर से बचने के लिए भोलेनाथ ने पहले इटारसी के पास स्थित तिलक सिंदूर में शरण ली थी, इसके बाद जटाशंकर में छुपे थे। पचमढ़ी में भगवान शंकर ने यहां अपनी विशालकाय जटाएं फैलाई थीं। चट्टानों का फैलाव देख ऐसा लगता है जैसे यह भगवान शिव का दूसरा घर हो।

पौराणिक कथाओं में भी इसका उल्लेख मिलता है। जिसमें बताया गया है कि, जब भस्मासुर भगवान शिव के पीछे पड़ गए थे उस समय भोलेनाथ यही छुपे थे। पहाड़ों और चट्टानों के बीच बरगद के पेड़ों की झूलती शाखाएं देखकर लगता है कि आज भी भोलेनाथ की विशालकाय जटाएं फैली हैं। वर्षों से मंदिर के पास रह कर सेवा कर रही सिंधू बाई के भजन सुनने के लिए श्रद्धालु रुक जाता है। यहां सिंधू बाई के भजनों की सीडी काफी लोकप्रिय है।

पशुपतिनाथ मंदिर

मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक शहर मंदसौर में स्थित अष्टमुखी पशुपतिनाथ मंदिर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर अपनी अष्टमुखी दिव्य रूप की वजह से भक्तों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बन हुआ है। बतादें कि, अष्टमुखी पशुपतिनाथ भगवान का यह मंदिर भोलेनाथ के अवतार पशुपतिनाथ को समर्पित है। यह मंदिर शिवना नदी के तट पर स्थित है। इतिहास की बात करें तो, पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण औलिकरा वंश के राजा यशोवर्मन ने 5वीं शताब्दी ईस्वी में करवाया था। मंदिर में बनी ऐतिहासिक अभिलेखों और शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र हुआ करता था।

वहीं इस मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली का एक बड़ा उदाहरण है। मंदिर की विशेषता इसकी ऊंची चोटी और जटिल नक्काशी है। इतना ही नहीं मुख्य गर्भगृह में एक अनोखा अलौकिक अष्टमुखी शिवलिंग भी है। जो 7.3 फीट ऊंचा है। शिवलिंग के ऊपरी ओर चार मुख और निचली और चार मुख स्थित है। यह मंदिर इतना अनोखा है कि यहां पर भक्तों को जीवन की चारों अवस्थाओं के दर्शन होते है। अब आप सोच रहे होंगे कैसे? दरअसल, पूर्व दिशा वाला मुख बाल्यावस्था को दर्शाता है, पश्चिम दिशा वाला मुख युवावस्था, उत्तर दिशा वाला मुख प्रौढ़ावस्था, दक्षिण दिशा वाला मुख किशोरावस्था का प्रतीक है। इस मंदिर में चारों ओर से दरवाजे है। जिसका अर्थ है कि भगवान पशुपतिनाथ के दरवाजे हमेशा भक्तों के लिए खुले रहते है।

मतंगेश्वर महादेव

महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर खजुराहो में मतंगेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों का जनसैलाब उमड़ता है। सदियों से इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा रोजाना होती आई है, लेकिन यहां की खासियत और श्रद्धा का केंद्र यहां का शिवलिंग है। क्योंकि यह जीवित है। कहा जाता है कि, यह हर वर्ष बढ़ता है। शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 2.5 मीटर और इसका व्यास 1.1 मीटर है। मान्यता है कि, यह शिवलिंग नीचे पाताल लोक की ओर ऊपर स्वर्गलोक की ओर बढ़ रहा है। जैसे ही यह पाताललोक पहुंचेगा। तब कलयुग का अंत हो जाएगा।

कहते है हर साल इस मंदिर में शिवलिंग लगभग एक इंच बढ़ता है। इसके पुख्ता सबूत भी हैं। जिसे अधिकारियों द्वारा हर साल इसे मापा जाता है। इसके साथ ही माना जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण एक चमत्कारिक मणि के ऊपर कराया गया था। यह मणि स्वयं भगवान शिव ने सम्राट युधिष्ठिर को प्रदान की थी। जिन्होंने इसे मतंग ऋषि को दे दिया था। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर आप मध्य प्रदेश के इन तमाम मंदिरों में जाकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन कर आशीर्वाद ले सकते हैं। यहां दर्शन करने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग


मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अगर हम उज्जैन शहर की बात करें तो इसका पुराणों और प्राचीन धर्म ग्रन्थों में ‘उज्जयिनी’ और ‘अवन्तिकापुरी’ के नाम से उल्लेख किया गया है। इस शहर में मंगल ग्रह का जन्मस्थान यानी मंगलश्वेर भी यहीं स्थित है। देश में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनमें से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग सबसे अधिक प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग शिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है।

ऐसे बने ‘शिव’ से ‘महाकाल’

माना जाता है कि, प्राचीन समय में महाराजा चंद्रसेन नाम के एक राजा थे, जो उज्जैन में राज्य किया करते थे। राजा चंद्रसेन भगवान शिव के परम भक्त थे। इसके साथ भी उनकी प्रजा भी भगवान शिव की पूजा किया करती थी। एक बार पड़ोसी राज्य से राजा रिपुदमन ने चंद्रसेन के महल पर आक्रमण कर दिया। जिसमें दूषण नाम के राक्षस ने राजा की प्रजा पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जिसके चलते पीड़ित प्रजा ने भगवान शिव का आह्वान किया। प्रजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए। इसके बाद राक्षस का वध किया। कहा जाता है कि, प्रजा की भक्ति को देख और उनके अनुरोध पर भगवान शिव हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में उज्जैन में ही विराजमान हो गए।

महाकुंभ का मेला
उज्जैन में प्रत्येक बारह साल में एक बार सिहंस्थ महाकुम्भ का मेला लगता है। जिसमें देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त आते हैं। अब उज्जैन पहुंचने के मार्ग की बात करें तो अगर आप वायुमार्ग से आ रहे हैं तो उज्जैन जाने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट यानी इंदौर आए। यहां से उज्जैन से करीब 58 किलोमीटर है। आप बाय कार या बस भी फिर यहां तक पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही अगर हम रेलमार्ग की बात करे तो उज्जैन लगभग देश के सभी बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है। आप आसानी से यहां आ सकते हैं। इसके साथ ही आप सड़कमार्ग से भी उज्जैन में नैशनल हाइवे 48 और नैशनल हाइवे 52 से आ सकते हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

नर्मदा नदी के किनारे स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, चौथा ज्योतिर्लिंग है। यह इंदौर से करीब 80 किमी दूर और खंडवा जिले में है। इसके साथ ही यहां अमलेश्वर ज्येतिर्लिंग भी है। वैसे तो इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में की गई है।

यह है मंदिर का इतिहास
माना जाता है कि, ओंकारेश्वर मंदिर वाली पहाड़ी पर मांधाता नाम के एक राजा ने कठोर तप किया था। जिसके चलते इस पर्वत को मांधाता पर्वत भी कहा जाता है। वहीं राजा के तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वे यहां प्रकट हुए। इसके बाद राजा ने भगवान शिव जी से वरदान के रूप में उन्हें यहीं वास करने के लिए कहा। भगवान शिव जी अपने भक्त की इच्छा पूरी की और वे ज्योति स्वरूप में यहां स्थापित शिवलिंग में समा गए। बताया जाता है कि यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है। यानी ये स्वयं प्रकट हुआ है।

इसे पहुंचे यहां
इस मंदिर में दर्शन के लिए आपको किसी खास दिन या फिर कोई समय लेने की जरूरत नहीं है। यहां आप सालभर में कभी भी आ सकते हैं। पूरे वर्ष ये मंदिर भक्तों के लिए खुला रहता है। इसके साथ ही मंदिर के पास ही मां नर्मदा नदी बहती है। अब बात करते हैं की यहां तक कैसे पहुंचे। तो इसके लिए आप इंदौर आए। इंदौर यहां से 80 किमी दूर। आप इंदौर देश के सभी बड़े शहरों से वायु मार्ग, छोटे शहरों से रेल मार्ग और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। इंदौर आने के बाद आप यहां से बस या पर्सनल टैक्सी करके मंदिर तक जा सकते हैं।

भोजपुर मंदिर

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 30 किलोमीटर दूर भोजपुर में भगवान शिव की विशालकाय शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर को भोजपुर मंदिर के नाम से जाना है। यह मंदिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर को अधूरा शिव मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण पूर्व परमार वंश के राजा भोज ने 1010 – 1053 ईं. में करवाया था। इस मंदिर की खासियत है कि यहां मौजूद शिवलिंग एक पत्थर से बनी हुई।
हालाँकि कुछ किंवदंतियों के मुताबिक इस स्थल के मूल मंदिर की स्थापना पांडवों द्वारा की गई मानी जाती है।

आज भी अधूरा है एक पत्थर से बना यह शिवलिंग का मंदिर
इस मंदिर को अधूरा होने का कारण बताया जाता है कि इस मंदिर को एक ही रात में बनाया गया था। जैसे ही सूर्योदय हुआ वैसे ही इसका कार्य रोक दिया गया।यह मंदिर उस वक्त के बाद आज तक पूरा नहीं बना है। सूरज के उगने तक गुंबद तक का ही काम हो पाया था। भोजपुर मंदिर का अधूरा गुंबद इस बात का प्रतीक है कि यह मंदिर वर्तमान से अधूरा है।

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