रायपुर.होली कब है, होलिका दहन का समय क्या है, इसके नियम क्या है, इसके बारे में जानने की इच्छा हम सभी के मन में होती है, आज हम जानेंगे की इस साल 2019 में होली के महापर्व पर कब होलिका दहन होगा, होलिका दहन का समय क्या है, इस त्यौहार का पौराणिक महत्व क्या है.
ज्योतिषियों का कहना है कि होली पर अगर आप विधि विधान से परिक्रमा कर सही प्रसाद चढ़ा दें तो खाली झोली भरते देर नहीं लगेगी. क्योंकि इस बार होलिका दहन पर बेहद शुभ संयोग बन रहा है. होलिका पूजन करने हेतु होलिका दहन वाले स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है. इसके बाद मोहल्ले के चौराहे पर होलिका पूजन के लिए डंडा स्थापित किया जाता है. उसमें उपले, लकड़ी एवं घास डालकर ढेर लगाया जाता है.
होलिका दहन के लिए पेड़ों से टूट कर गिरी हुई लकड़ियां उपयोग में ली जाती हैं तथा हर दिन इस ढेर में कुछ-कुछ लकड़ियां डाली जाती हैं.- होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं, जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रहलाद माना जाता है. पौराणिक शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इन दिनों शुभ कार्य करने पर अपशकुन होता है. इस वर्ष होलाष्टक 13 मार्च से शुरू होकर 20 मार्च तक रहेगा इस आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं इसके अंतर्गत होलिका दहन और धुलेंडी खेली जाएगी.होलिका दहन का आज शुभ मूहूर्त 20:58 मिनट से 24:23 मिनट तक रहेगा. रंग वाली होली 21 मार्च को मनाई जाएगी.
होली की पौराणिक कथा
होली मनाने के पीछे हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा सबसे लोकप्रिय है.
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने दिन रात तपस्या कर भगवान ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि इस संसार का कोई भी जीव-जंतु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसका अंत नहीं कर सकता. न वो रात में मरेगा और न ही दिन में, न पृथ्वी पर न आकाश में, न घर में न बाहर, यहाँ तक की किसी भी शत्रु से उसका वध नहीं होगा.
ऐसा वरदान ब्रह्माजी से पाकर वो बहुत ही निरंकुश बन बैठा, उस पर अंकुश लगाना मुश्किल हो गया। ऐसे राक्षस के यहाँ प्रल्हाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रल्हाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी.
हिरण्यकश्यप को प्रल्हाद की इस विष्णु भक्ति को देखकर बहुत ही नफरत सी होने लगी और उसने प्रल्हाद को आदेश दिया कि, वह उसके अतिरिक्त किसी और की स्तुति या प्रशंसा ना करे परन्तु विष्णु भक्त प्रल्हाद कहा मानने वाला था, वो तो दिन-रात विष्णु के गुणगान करता था। गुस्से में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रल्हाद को जान से मारने की ठान ली. प्रल्हाद को जान से मरने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई रास्ते अपनाए परन्तु हर बार भगवान विष्णु ने प्रल्हाद की जान बचाई, उसको एक खरोंच तक नहीं आने दी.
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान मिला था. इसी का फायदा उठाते हुए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से विष्णु भक्त प्रल्हाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
होलिका छोटे बालक प्रल्हाद को अपनी गोद मे बिठाकर जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी, उसके बाद चमत्कार हुआ प्रल्हाद की जगह होलिका स्वयं ही जल गयी और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद की जान बच गयी तभी से होली का यह पावन पर्व मनाने की प्रथा प्रचलित हुई.