
रायपुर। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में आज बिखराव की स्थिति है. पार्टी के अंदर आंतरिक कलह उफान पर है. कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेता और पदाधिकारियों के बयानों से अंदर की बातें भी अब खुलकर बाहर आने लगी है. बस्तर से लेकर सरगुजा तक नेताओं के बीच सामंजस्य की कमी है. पार्टी की लाइन से अलग जाकर कहीं-कहीं नई लाइन खींचने की कोशिशें भी दिखती है. कहीं-कहीं से खुला विद्रोह दिख रहा है, तो कहीं-कहीं से गंभीर आरोपों के साथ अपने ही नेताओं की हाईकमान से शिकायतें तक भी. टिकट खरीदने-बेचने, पैसे लेने-देने, घात-भीतरघात, नेता फूलछाप जैसे अनगिनत आरोप लग रहे हैं, लगाए जा रहे हैं. कहीं-कहीं से ऐसी बातें गुटों में एक-दूसरे से कहलवाए जा रहे हैं और ऐसी बातें चुनाव दर-दर चुनाव होती हार के बाद से लगातार पार्टी के अंदर हो रही है.
2023 विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद से पार्टी के अंदर आंतरिक विवाद और गुटबाजी हावी है. इसका असर लोकसभा में दिखा, उपचुनाव में भी और निकाय-पंचायत चुनाव में भी. हर चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से बिखरी हुई नजर आई. परिणाम आज पार्टी संगठन में व्यापक बदलाव की हवा है. अध्यक्ष को बदलने की मांग उठ रही है. बड़े नेता एक-दूसरे के विरुद्ध बोल रहे हैं. अभी से 2028 चुनाव में नेतृत्व को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. वो सबकुछ वो रहा है, जिसे देख कर लगता है कि पीसीसी में सब जहर ही उगल रहे हैं.
वैसे पीसीसी संगठन की नींव 2018 विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद से कमजोर होने लगी थी. 2019 के बाद से धीरे-धीरे सत्ता और संगठन के बीच खाई बढ़ती गई. ढाई-ढाई साल वाले कथित फार्मूले से बंटवारे का भंयकर विवाद उपजा. और यह विवाद 23 के चुनाव आते-आते और बढ़ गया. परिणाम पार्टी सत्ता बाहर तो हुई ही, संगठन की सामूहिक एकता भी तार-तार हो गई. इसके बाद से पार्टी चाहकर भी संभल नहीं पाई, नेता एक नहीं हो पाए और बदलने-बदलवाने, हटने-हटवाने जैसी बातें होने लगी.
पीसीसी की स्थिति आज ऐसी है कि अध्यक्ष को कहना पड़ रहा है कि निकाय में टिकट तो बड़े नेताओं और विधायकों के हिसाब से बंटे थे. अर्थात निकाय में हार के लिए मैं अकेले जिम्मेदार नहीं, सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है. फिर मुझे क्यों निशाना बनाया जा रहा है ? अब ये पार्टी के नेता बेहतर जानते हैं कि पार्टी के अंदर कौन, किसे और कैसे निशाना बना रहे हैं. लेकिन पार्टी की स्थिति को देखकर लगता है कि कांग्रेस सत्ताधारी दल की जगह अपनों से ही ज्यादा लड़ रही है.
वैसे भी पीसीसी इन दिनों कई तरह के संकटों से घिरी नजर आती है. चुनावी हार, गुटबाजी, आंतरिक कलह तो है ही, ईडी, सीबीआई और एसीबी की पार्टी कार्यालय तक आंच और जांच भी है. इस जांच के दायरे में पार्टी के कई नेता घिरे हुए हैं. बस्तर से आने वाले बड़े नेता जेल में हैं. बावजूद इसके पार्टी इन संकटों से कैसे उबरे इस पर नेताओं की सामूहिकता दिखती नहीं ?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस को आज किसी ऐसे की जरूरत है, जो भगवान शिव की तरह पार्टी के अंदर का सारा विष पी सके. मूर्छित होती पार्टी को मजबूत पक्ष के समक्ष खड़ा कर सके. सभी को जोड़कर, पुरानी बातों को छोड़कर चल सके, जो मौजूदा स्थितियों, परिस्थितियों को बदल सके. लेकिन सवाल यही है कि इसके लिए क्या मौजूदा नेतृत्व को फिर एक मौका दिया जाएगा ? या फिर पार्टी के अंदर कोई विष पीने वाला शिव आएगा ?
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक