प्रदीप गुप्ता, कवर्धा. बस्तर के बड़े नक्सली कमांडर व माओवादी नेता अब कवर्धा जिला के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र में आमद दे चुके हैं, इस बात की पुष्टि हाल के महीनों में हुई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में बड़े नक्सली नेताओं के पकड़े जाने से हुई है. बड़े नक्सली कमांडर व माओवादी नेताओं की सक्रियता किसी बडे घटना की ओर इशारा कर रही है. हालांकि, इस पूरे मामले में पुलिस मुस्तैद होने का दावा कर रही है.
सिलसिले वार घटनाओं की बात करें तो बारह दिन पहले हुए नक्सली पुलिस मुठभेड़ में पता चला है कि झीरमकांड का मास्टर माइंड कबीर उर्फ सुरेन्द्र सहित कई बडे माओवादी नेता भोरमदेव अभ्यारण्य के ग्राम बकोदा के जंगल में कैम्प किए हुए थे. वहीं दो माह पहले भी जिले से मात्र 30 किमी दूर पड़ोसी जिला राजनांदगांव में शहरी नक्सली के बडे कमांडर को पकडा गया था. इसके अलावा तीन माह पहले 40 लाख का इनामी नक्सली पहाड़ सिंह के सरेंडर करने के बाद माओवादी संगठन जीआरबी डिवीजन के सचिव जीवा उर्फ दीपक तेलतुकडे भी लगातार जिले में सक्रिय रहते हुए अपनी पैठ जमाने में लगा हुआ है.
दरअसल, बीते दो साल से बस्तर में फोर्स के लगातार दबाव की वजह से माओवादी नए ठिकाने की तलाश में कवर्धा जिले की ओर रूख किए हुए हैं. माओवादियों से दो साल पहले मिले दस्तावेज में भी इस बात का खुलासा हो चुका है कि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ को जोड़कर एमएमसी जोन बताना गया है, जो अब पूरी तरह से धरातल पर काम रहा है. इसके अलावा आए दिन जंगल के गांवों में मिलने वाले पर्चे एमएमसी जोन के नाम से ही जारी किया जा रहा है. इससे इस बात की पूरी आशंका है कि बस्तर के सभी बड़े नक्सली नेता कवर्धा जिले के जंगल में अपनी पैठ जमा चुके हैं.
अब अभियान छेड़ने का समय
ग्राम बकोदा के जंगल में नक्सलियों का एकत्रित होना आम लोगों के साथ-साथ पुलिस और प्रशासन के लिए भी खतरे की घंटी है. हालांकि, पुलिस बीते दो सालों से माओवादियों को खदेड़ने का दावा करती रही है, लेकिन हाल की घटनाओं को देखते हुए अब पुलिस से नक्सलियों के खिलाफ अभियान छेड़ने की जरूरत जानकार महसूस करने लगे हैं. इससे बस्तर की तरह कवर्धा के लिए भी नक्सली नासूर नहीं बन पाएंगे.