
तेलंगाना के श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) सुरंग में फंसे 8 व्यक्तियों की तलाश जारी है. यह घटना 22 फरवरी की सुबह हुई, जब सुरंग की छत का एक हिस्सा अचानक गिर गया. उस समय सुरंग में लगभग 50 श्रमिक कार्यरत थे, जिनमें से 42 ने सुरक्षित बाहर निकलने में सफलता पाई, जबकि एक इंजीनियर सहित 8 लोग अभी भी सुरंग में फंसे हुए हैं. उन्हें बचाने के लिए सेना, नौसेना, एनडीआरएफ, सिंगरेनी खदान, बीआरओ, एनजीआरआई, जीएसआई, एलएंडटी और अन्य प्रमुख संगठनों की टीमें राहत कार्य में सक्रिय हैं.
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ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार तकनीक का उपयोग करके फंसे व्यक्तियों की खोज की जा रही है. टनल से तेज दुर्गंध आ रही है, जिससे अनहोनी की संभावना बढ़ गई है. रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए सबसे बड़ी बाधा टनल में बढ़ता हुआ सिल्ट और पानी का स्तर है. तेलंगाना सरकार के अनुसार, टनल में फंसे श्रमिकों के जीवित बचने की संभावना केवल 1% है.
सुरंग में प्रति मिनट पांच हजार लीटर पानी बह रहा है, जबकि सुरंग में भारी कीचड़ और पत्थर पहले ही साफ किए जा चुके हैं. पानी का बहाव राहत प्रयासों में एक गंभीर बाधा बन गया है. ऐसे में मजदूरों के हित की चिंता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. सरकार उनकी सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है. गुरुवार से राहत प्रयास तेज करने का निर्णय लिया गया है. एनडीआरएफ रैथोल माइनर की टीमें सुरंग के कीचड़ में फंसी टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के आसपास पहुंच गई हैं. बुधवार को लोकोट्रेन ट्रैक पर गैस कटिंग और मरम्मत का काम किया गया था.
वेंटिलेशन ट्यूब को सुधारने का प्रयास किया गया है. अत्यधिक जमा हुए पानी को निकालने के लिए भारी मोटरों का सहारा लिया जा रहा है. सुरंग के भीतर और बाहर के क्षेत्रों की नियमित निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए गए हैं. अधिकारियों का कहना है कि इससे राहत कार्यों की स्थिति का प्रत्यक्ष अवलोकन संभव होगा और स्थिति का मूल्यांकन किया जा सकेगा.
सीमावर्ती क्षेत्रों में कार्यरत सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के वरिष्ठ अधिकारी कर्नल परीक्षित मेहरा के साथ पूर्व डीजी हरपालसिंह और पूर्व एडिशनल डीजी पुरुषोत्तम ने सुरंग का निरीक्षण किया. इन अधिकारियों के पास सीमावर्ती और पहाड़ी इलाकों में कार्य करने का व्यापक अनुभव है. उन्होंने दुर्घटनास्थल और वहां की मिट्टी की विशेषताओं का मूल्यांकन किया और आवश्यक उपायों के लिए कई सुझाव प्रस्तुत किए.
SLBC सुरंग एक खतरनाक परियोजना बन गई है, जो देश में निर्मित रेलवे या सड़क टनल से भिन्न है. इसका मार्ग एक वन आरक्षित क्षेत्र से होकर गुजरता है, जिसके कारण सरकारों ने इसे भूमिगत जल सुरंग के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया. यह सुरंग ग्रेविटी आधारित परियोजना के रूप में बनाई जा रही है, जिसमें पानी ऊपरी क्षेत्रों से निचले क्षेत्रों की ओर प्रवाहित किया जाता है.
सुरंग में पिछले चार वर्षों से बड़े पैमाने पर पानी, कीचड़ और मिट्टी का गिरना जारी है. यह समस्या किसी अन्य सुरंग में नहीं देखी गई है. जब SLBC में टनल बोरिंग मशीन से खुदाई प्रारंभ हुई, तब वहां पहले से मौजूद शियर जोन (प्राकृतिक जलाशय) अस्थिर हो गया. यह स्थिति अब गंभीर आपदा का रूप ले चुकी है.
यह कारण है कि सुरंग की खुदाई के क्षेत्र में मिट्टी में पानी मिल रहा है. इससे भूमि की स्थिति ‘ढीली’ हो गई है. इस स्थिति में थोड़ी सी भी हलचल से सुरंग के ढहने का खतरा बढ़ गया है. जब बोरिंग मशीनों ने कार्य प्रारंभ किया, तो सुरंग के ऊपरी स्लैब की मिट्टी और अधिक अस्थिर हो गई.
देश की सबसे लंबी अंडर वॉटर टनल के निर्माण की कहानी 1978 से शुरू होती है, जब मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार थी. उस समय आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चेन्ना रेड्डी ने भारत के सबसे बड़े वॉटर टनल प्रोजेक्ट का प्रस्ताव प्रस्तुत किया. इस प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिलने के बाद, रेड्डी सरकार ने एक सर्वे कमेटी का गठन किया.
सर्वे कमेटी ने दो वर्षों तक कृष्णा नदी और नल्लामाला फॉरेस्ट रिजर्व के निकट सुरंग निर्माण के लिए भूमि का अध्ययन किया. इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य कृष्णा नदी के जल को पहाड़ी क्षेत्रों की ओर मोड़ना है, जिससे वहां पेयजल की समस्या का समाधान हो सके और कृषि को भी सहायता मिले.
1980 में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री तंगुतुरी अंजैया बने और उन्होंने टनल प्रोजेक्ट के लिए 3 करोड़ रुपए आवंटित किए, लेकिन निर्माण कार्य आरंभ नहीं हो सका. 1983 में एनटीआर मुख्यमंत्री बने और उन्होंने प्रोजेक्ट को शीघ्रता से शुरू करने के लिए इसे दो भागों, लेफ्ट बैंक और राइट बैंक कैनाल में विभाजित किया, फिर भी सुरंग का कार्य बाधित रहा.
सुरंग निर्माण में देरी का मुख्य कारण वह स्थान था जहां सुरंग के माध्यम से पानी मोड़ना था, जो नल्लामाला फॉरेस्ट रिजर्व में आता है. वन्यजीवों के संरक्षण के लिए निर्धारित इस भूमि पर खुदाई करना पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन था. 2004 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार ने इस रुके हुए प्रोजेक्ट को पुनः आरंभ करने के लिए केंद्र को पत्र लिखा.
तेलंगाना सिंचाई विभाग के पूर्व मुख्य इंजीनियर टी. सुंदर रेड्डी के अनुसार, ‘YSR सरकार के दौरान केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए पहली बार स्वीकृति दी. केंद्र ने राज्य सरकार को यह शर्त रखकर टनल निर्माण की अनुमति दी कि इससे नल्लामाला वन आरक्षित क्षेत्र को कोई हानि नहीं पहुंचेगी. अगस्त 2005 में, राज्य सरकार ने SLBC सुरंग परियोजना के निर्माण के लिए 2,813 करोड़ रुपए की लागत को मंजूरी दी.’
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