रायपुर- कैंसर होना,  मौत होने की घोषणा नहीं है. हम इससे लड़ सकते हैं. मुझे आखिरी स्टेज का कैंसर था. मुझे पता था कि आॉपरेशन के दौरान मेरी मौत भी हो सकती है, लेकिन मैंने सोचा कि मरना तो है ही, कोशिश करने में क्या हर्ज है. इस वक्त मैं बिल्कुल अकेली थी. कैंसर से लड़ने का यह अनुभव बॉलीवुड अभिनेत्री व कैंसर सर्वाइवर मनीषा कोइराला ने साझा किया. मौका था बालको मेडिकल सेंटर के प्रथम वर्षगांठ पर आयोजित कैंसर सर्वाइवर कार्यक्रम का. अनुभव साझा करते हुए वे काफी भावुक हो गई. इस कार्यक्रम का लल्लूराम डॉट कॉम मीडिया पार्टनर है.

नया रायपुर के अटल नगर में मनीषा ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, ‘कैंसर के बारे में मुझे जब सबसे पहले बताया गया तो वह रात मेरी सबसे लंबी और अकेली रात थी. समय कट ही नहीं रहा था. जब मैं दोबारा जांच करवाने के लिए मुंबई आई तो दिल के किसी कोने में एक उम्मीद थी कि मेरी पहली जांच गलत निकलेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आंखों के सामने बीती हुई पूरी जिंदगी थी, अब इस समय में हम अपने और दूसरों के लिए जो भी अच्छा कर सकते हैं, वह जरूर करना चाहिए.’
मनीषा ने बताया कि बीमारी के दौरान उनके अनुभव बेहद अलग रहे. कैंसर होना, मौत होने की घोषणा नहीं है. हम इससे लड़ सकते हैं. मुझे आखिरी स्टेज का कैंसर था. मुझे पता था कि आॉपरेशन के दौरान मेरी मौत भी हो सकती है, लेकिन मैंने सोचा कि मरना तो है ही, कोशिश करने में क्या हर्ज है. अच्छे डॉक्‍टर की खोज की. बीमारी के बारे में बहुत पढ़ा. ऐसा करने से आप अपनी बीमारी और उसके इलाज को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं.’

मनीषा के मुताबिक, किसी भी गंभीर बीमारी से निपटने के लिए मानसिक संतुलन बनाकर रखना सबसे जरूरी होता है. डॉक्‍टर अपना काम कर चुके होते हैं. इंसान को खुद को मेहनत करती पड़ती है. मानसिक रूप से भी और शारीरिक रूप से भी. सबसे जरूरी बात है खुद में हौंसला बनाए रखने की. डॉक्‍टर और उनके उपचार पर भरोसा रखने की. वह कहती हैं, ‘यह मान कर चलिए कि शायद आपके जीवन में कुछ असंतुलन था, जिसे ठीक करने के लिए यह बीमारी आई है. अपनी गलतियों को ठीक कीजिए.’