
Masane ki Holi 2025, वाराणसी. एक ओर चिता से उठता धुंआ तो दूसरी ओर भस्म उड़ाते लोग. ये नजारा बताता है कि काशी में जीवन मरण सब एक है. यहां श्मशान में होली का उत्सव, ये बताता है कि काशी के लोगों के लिए मृत्यु भी कोई बड़ी चीज नहीं है. ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर नगरी भी बाबा विश्वनाथ की है. जो खुद जीवन मरण के चक्र से परे हैं. ऐसे ही बाबा की नगरी और यहां के लोग भी कुछ इसी तरह अपना जीवन जीते हैं. काशीवासियों के लिए मृत्यु भी सामान्य है. ये ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं है, हमेशा आनंद में रहता है. शायद तभी यहां के बड़ों के आशीर्वाद में भी ये बात झलकती है. जो हमेशा अपने आशीष में ये बात कहते हैं कि ‘मस्त रह मस्त करा’. यहां की परंपराएं भी अनूठी. इन्हीं परंपराओं में से एक मसाने की होली (masane ki Holi 2025) सोमवार को यहां खेली गई.

काशी में सोमवार को हरिश्चंद्र घाट में मसाने की होली (masane ki Holi 2025) खेली गई. जिसमें बड़ी संख्या में शिवभक्तों ने हिस्सा लिया. सड़कों से गलियों तक भूतभावनों की टोली जमी रही. पूरा घाट हर-हर महादेव और बम-बम भोले के जयघोष से गूंज उठा. जलती चिताओं के बीच भस्म से ये होली खेली गई. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस दौरान करीब 5 लाख की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे.
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एक चुटकी राख के लिए तरसते हैं लोग
ये चीज सिर्फ बनारस में ही संभव है कि जहां लोग चिता, भस्म, श्मशान से दूर भागते हैं, वहीं यहां आए लोग एक चुटकी भस्म लेने की जुगत में लगे रहते हैं. बताया जा रहा है कि इस होली को देखने की केवल विदेशों से 5 लाख सैलानी पहुंचे हैं. होली की शुरुआत से पहले सुबह कीनाराम आश्रम से शोभायात्रा निकाली गई. घोड़े और रथ पर सवार होकर संत, नागा संन्यासी 2 किमी दूर हरिश्चंद्र घाट पहुंचे.
क्यों मनाई जाती है masane ki Holi?
माना जाता है कि इस दिन देवाधि देव महादेव ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी. बाबा ने यमराज को इस दिन पराजित किया था. जिसके बाद चीता की राख से होली खेली थी. इसी कारण से हर साल इस दिन को विशेष रूप से मसान की होली के नाम से मनाया जाता है. इसमें चिताओं की राख को इकट्ठा करके उस राख से ही होली खेली जाती है.
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दूसरी जनश्रुति के अनुसार भगवान शिव जब माता पार्वती को विदा कराने के बाद काशी लेकर आए थे. तब शिव जी ने अपने गणों के साथ बहुत ही उत्साह और धूमधाम से होली खेली थी. लेकिन वे भूत-प्रेतों के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसके चलते रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन शिव जी ने सभी भूत-प्रेतों के साथ चिता के भस्म से होली खेली थी.
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