Madras High Court On Tamil Language: तमिलनाडु में ट्राय लैंग्वेज (tri language in Tamil Nadu) को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच वॉर जारी है। ट्राय लैंग्वेज विवाद के बीच मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु में सरकारी नौकरी करनी है तो तमिल आना जरूरी है। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने एक फैसले की सुनवाई करते हुए कहा कि, तमिलनाडु में सरकारी नौकरी चाहने वालों को तमिल पढ़ना और लिखना आना चाहिए।

बेंच ने ये टिप्पणी तमिलनाडु बिजली बोर्ड (TNEB) के एक जूनियर सहायक से जुड़े मामले में की। जो अनिवार्य तमिल भाषा की परीक्षा पास करने में विफल रहा। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि, उनके पिता नेवी में थे जिसके चलते उन्होंने CBSE स्कूल में पढ़ाई की है। इसलिए वह कभी तमिल नहीं सीख पाए। कोर्ट अगले महीने फैसला सुनाएगा।
बता दें कि नई शिक्षा नीति को लेकर तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन और केंद्र की मोदी सरकार के बीच टकरार जारी है। स्टालिन नई शिक्षा नीति को तमिलनाडु में लागू करने से इंकार कर दिया है। वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि इसे पूरे देश के सभी राज्यों में लागू होगा। इसे लेकर संसद के बजट सत्र में भी काफी हंगामा हुआ है।
जानिए पूरा मामला
दरअसल पूरा मामला तमिलनाडु बिजली बोर्ड (TNEB) के कर्मचारी थेनी के एम जयकुमार से जुड़ा है। जयकुमार को दो साल के भीतर तमिल भाषा की परीक्षा पास नहीं करने के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था।इसके खिलाफ जयकुमार ने कोर्ट का रुख किया। 10 मार्च को जस्टिस जी जयचंद्रन और जस्टिस आर पूर्णिमा ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, तमिल भाषा की जानकारी के बिना कोई सरकारी कर्मचारी कैसे काम कर सकता है।
कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी. जयचंद्रन और जस्टिस आर. पूर्णिमा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी सरकारी कर्मचारी के लिए तमिल भाषा का ज्ञान आवश्यक है, ताकि वह जनता के साथ प्रभावी संवाद स्थापित कर सके। अदालत ने सवाल किया कि यदि कोई व्यक्ति सरकारी कार्यालय में कार्यरत है, तो वह बिना तमिल भाषा जाने अपने कर्तव्यों का निर्वहन कैसे कर सकता है?कोर्ट ने आगे कहा कि सरकारी पदों पर चयनित उम्मीदवारों को निर्धारित समय-सीमा के भीतर अनिवार्य भाषा परीक्षा पास करनी होगी, अन्यथा वे अपनी नौकरी खो सकते हैं. इस मामले पर अंतिम बहस के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया है।
तमिलनाडु में भाषा को लेकर विवाद
तमिलनाडु में भाषा को लेकर लंबे समय से बहस जारी है। हाल ही में, राज्य और केंद्र सरकार के बीच नई शिक्षा नीति (NEP) को लेकर टकराव बढ़ गया है।
ट्राय-लैंग्वेज पॉलिसी पर बढ़ता तनाव
15 फरवरी: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने वाराणसी में तमिलनाडु सरकार पर राजनीतिक स्वार्थ के तहत भाषा नीति का विरोध करने का आरोप लगाया।
18 फरवरी: तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि केंद्र सरकार जबरन तीन-भाषा नीति थोपना चाहती है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार फंड जारी करने के लिए राज्यों पर दबाव बना रही है।
23 फरवरी: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन को पत्र लिखकर स्पष्ट किया कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य किसी भी भाषा को थोपना नहीं है, बल्कि भाषाओं को प्रोत्साहित करना है।
25 फरवरी: मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि तमिलनाडु अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए एक और भाषा आंदोलन के लिए तैयार है।
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नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का प्रभाव
नई शिक्षा नीति के अनुसार:
- प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) की शिक्षा मातृभाषा या स्थानीय भाषा में होनी चाहिए.
- कक्षा 6-10 में छात्रों को तीन भाषाओं का अध्ययन करना आवश्यक होगा.
- गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जा सकता है, जबकि हिंदी भाषी राज्यों में कोई अन्य भारतीय भाषा (जैसे तमिल, बंगाली, तेलुगु) दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जा सकती है.
- कक्षा 11-12 में स्कूलों को विदेशी भाषाएं विकल्प के रूप में देने की अनुमति होगी.
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