दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि वे दक्षिण दिल्ली के सैनिक फार्म कॉलोनी के नियमितीकरण के मुद्दे पर आपस में चर्चा करें. न्यायालय की बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला शामिल हैं, ने स्पष्ट किया कि इस स्थान पर न तो कोई विध्वंसात्मक कार्रवाई हो रही है और न ही कॉलोनी को कानूनी मान्यता प्राप्त है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच लटका हुआ है. इसे इस तरह से नहीं चलने दिया जा सकता. आपको एक नीति निर्णय लेना आवश्यक है. हम यह नहीं बता रहे कि क्या करना चाहिए, लेकिन या तो इसे नियमित करें या फिर इसे समाप्त करें. आप केवल मामले को टालने का प्रयास कर रहे हैं. आप चाहते हैं कि हम निर्णय लें. सभी को मिलकर इसका समाधान निकालना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि कॉलोनी को न तो ध्वस्त किया गया है और न ही इसे वैधता प्रदान की गई है. पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और दिल्ली सरकार के स्थायी वकील से सहयोग की मांग की. पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि मामला केन्द्र और राज्य के बीच संतुलन बनाए रखने में है, और इसे आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती. नीतिगत निर्णय लेना आवश्यक है. पीठ वर्तमान में कॉलोनी के नियमितीकरण से संबंधित 2015 में दायर एक याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.

पीठ ने कहा कि हमें प्रारंभिक रूप से यह प्रतीत होता है कि रिट याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों का समाधान भारत सरकार के आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली सरकार और निगम द्वारा किया जाना आवश्यक है. इस मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को निर्धारित की गई है.

अर्जी दाखिल की गई

दिल्ली हाई कोर्ट कॉलोनी के नियमितीकरण से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें 2015 में दायर एक याचिका भी शामिल है. कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक दृष्टि में, याचिकाओं में उठाई गई चिंताओं को केंद्र सरकार के आवास और शहरी विकास मंत्रालय, दिल्ली सरकार और एमसीडी द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को निर्धारित की गई है, और कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों से निर्देश लेने का निर्देश दिया है.

अदालत ने पहले केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह कॉलोनी के नियमितीकरण पर निर्णय ले. केंद्र सरकार के वकील ने यह तर्क दिया कि कॉलोनी की स्थिति यथावत रहनी चाहिए, क्योंकि यह एक ‘समृद्ध’ क्षेत्र है, और न तो इसमें मरम्मत की अनुमति दी जा सकती है और न ही इसे तोड़ा जा सकता है.

हाईकोर्ट से याचिकाकर्ता ने की मांग

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से अनुरोध किया कि इस दौरान मरम्मत की अनुमति प्रदान की जाए. हालांकि, अदालत ने व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि किसी भी पक्ष को बिना अनुमति के निरंतर मरम्मत करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि घरों का निर्माण कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करते हुए किया गया है, लेकिन चूंकि यह कॉलोनी लंबे समय से मौजूद है, इसलिए अब सरकारों को इस मामले में निर्णय लेना आवश्यक है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो नीतियों का निर्माण, नियमों में संशोधन और निवासियों से विकास शुल्क की वसूली संभव है. कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अनावश्यक रूप से मुकदमेबाजी जारी है, जिससे लोग भयभीत हैं. यदि आवश्यक हो, तो हम आपको मध्यस्थता केंद्र भेजने की पेशकश कर सकते हैं.

केंद्र सरकार ने दी अहम दलील

दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार ने एक हलफनामे के माध्यम से जानकारी दी है कि उसने समृद्ध कॉलोनियों, जैसे कि सैनिक फार्म, के नियमितीकरण में हस्तक्षेप न करने का निर्णय लिया है. वर्तमान में, सरकार 1,797 अनधिकृत कॉलोनियों के पुनर्विकास कार्य पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है. इसके अलावा, केंद्र ने यह भी स्पष्ट किया कि समृद्ध कॉलोनियों में किए गए निर्माणों को दिसंबर 2023 तक कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है.

‘मुद्दा हमेशा के लिए सुलझाया जाए’

दिल्ली हाई कोर्ट ने अप्रैल 2022 में रमेश दुगर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि सैनिक फार्म के नियमितीकरण का मुद्दा अब स्थायी रूप से हल किया जाना चाहिए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकारों को इस मामले में निर्णय लेना चाहिए और इसे अनिश्चितकाल तक टालना उचित नहीं है.