
रायपुर। पापी पेट का सवाल है साहब… जिस्म नहीं, कला बेचकर पैसे कमाते हैं… “हमारे समाज के लिए क्षेत्र में रोजी-मजदूरी का दूसरा कोई साधन नहीं है, इसलिए मजबूरी में दूसरे राज्य जाकर नृत्य का काम करते हैं, जिससे हमारा गुजर-बसर होता है…”
बिहार के रोहतास जिले के नटवार क्षेत्र से पकड़ी गईं 41 नाबालिग लड़कियों से जुड़ा यह मामला मुंगेली जिले से भी संबंध रखता है, क्योंकि पकड़ी गई लड़कियों में कुछ मुंगेली से भी हैं।

मजबूरी बन गई ज़रूरी
हम जिन लोगों की बात कर रहे हैं, वे समाज की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। बदतर जीवन जी रहे इन लोगों के लिए नृत्य करना मुख्य परंपरा है। वे कहते हैं कि आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं है, इसलिए मजबूरी में इस काम को कर रहे हैं। फिर भी, समस्याओं से ग्रसित जीवन बसर कर रहे हैं।

आधुनिक युग में भी ये लोग आदिम जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। गरीबी से ग्रसित, टूटे-फूटे मकान, कपड़ों से बने दरवाजे, गंदगी के बीच जीवन यापन… यह कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने समाज के ही लोग हैं। इन्हें वोट डालने का अधिकार तो मिला है, लेकिन इनका आरोप है कि शासकीय योजनाओं का लाभ जैसे मिलना चाहिए, वैसे नहीं मिल रहा है।
जानिए क्या है इनकी बेबसी!

मुंगेली जिले के सरगांव थाना क्षेत्र के देवारपारा में रहने वाले देवार और नट जाति के लोग बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं। ये समाज की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं और आधुनिकता के इस दौर में भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मामला तब सामने आया जब बिहार राज्य के रोहतास जिले के नटवार क्षेत्र के रेड-लाइट एरिया में छत्तीसगढ़ की 41 नाबालिग लड़कियों को दस्तयाब किया गया। इनमें से कुछ मुंगेली जिले के सरगांव की रहने वाली थीं। परिजनों से इस विषय पर जानकारी लेने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम की टीम जब वहां पहुंची तो नजारा हैरान करने वाला था।
परिजनों ने बताया कि उनके समाज की लगभग 6-7 महिलाएं डांस के लिए अन्य राज्यों में जाती हैं और अपने बच्चों को भी सिखाने के लिए साथ ले जाती हैं। बिहार में पकड़ी गई लड़कियां इन्हीं महिलाओं के बच्चे थे, जबकि महिलाओं को छोड़ दिया गया। अब डर की वजह से महिलाएं घर वापस नहीं आ रही हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस उन्हें गलत साबित कर रही है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। उनका कहना है कि नृत्य करना उनकी परंपरा रही है और आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण वे सालों से ठेकेदारों के माध्यम से अन्य राज्यों में जाकर कमाई कर रहे हैं।
इन लोगों को रोज़ के हिसाब से 300 रुपये दिए जाते हैं, जिन्हें कई महीनों तक जोड़कर वे त्योहारों में घर लौटते हैं और अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। बिहार में हुई कार्रवाई को लेकर मुंगेली पुलिस ने पुष्टि की है कि सरगांव की 2 लड़कियां इस मामले में शामिल थीं।
नृत्य के लिए ले जाने का झांसा
Lalluram.com की टीम जब इस मामले की हकीकत जानने के लिए मौके पर पहुंची और वहां के लोगों से बातचीत की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यहां शिक्षा की भारी कमी और आय का कोई अन्य साधन न होने के कारण भीख मांगना, कबाड़ इकट्ठा करना और नृत्य करना इन लोगों की मजबूरी बन गई है।
महिलाएं अपने बच्चों को लेकर अन्य राज्यों में चली जाती हैं और कई महीनों तक डांस ऑर्केस्ट्रा में काम करके अपनी कमाई लेकर लौटती हैं।यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि अधिकांश लोगों के आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं बने हैं, जिसके कारण वे सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों ने बताया कि उनकी जाति के बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है।
कैसे होगा सुधार?
बेहद पिछड़ी हुई इस जाति के उत्थान के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना होगा। इनकी दिनचर्या में सुधार लाने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विशेष पहल करनी होगी। तथाकथित नेता वोट के लिए तो इनका इस्तेमाल कर लेते हैं, लेकिन शासकीय योजनाओं से इन्हें दूर रखा जाता है। इसी कारण यह समाज लगातार पिछड़ता जा रहा है और जीविका के लिए पलायन को मजबूर हो रहा है।
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