रायपुर. छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में अनुसूचित जाति के एकमात्र आरक्षित जांजगीर लोकसभा सीट लंबे वक्त तक कांग्रेस का गढ़ रही है. लेकिन 2004 के बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. अपने इस गढ़ पर कांग्रेस आज भाजपा के सामने संघर्ष करती नजर आती है. वैसे यह सीट बसपा का प्रभाव वाली मानी जाती है, जहां से बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपना पहला चुनाव लड़ा था. हालांकि, वे चुनाव हार गए थे. जांजगीर की इस आरक्षित सीट पर अबकी बार कौन मारेगा बाजी ? क्या भाजपा का कमल यहां लगातार चौथी बार खिलेगा या डेढ़ दशक बाद यहां से कांग्रेस की हो पाएगी वापसी ? या फिर अजीत जोगी से गठबंधन के रास्ते बसपा का हाथी चल पाएग विजयी चाल ? आइये जानते हैं जांजगीर का सियासी समीकरण.
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित जांजगीर लोकसभा सीट की पहचान कृषि प्रधान इलाके की रूप में है. यह इलाका किसी समय में सबसे सिंचित इलाका भी रहा है. इस इलाके की पहचान धार्मिक और पुरात्विक भी है. क्योंकि भगवान राम को झूठे बेर खिलाने की पौराणिक कथा इस इलाके शिवरीनारायण सुनने और देखने को मिलते हैं. यहां भगवान विष्णु की बेहद प्राचीन मंदिर भी है. इसके साथ ही भगवान शिव को खुश करने लक्ष्मण यहां शिवलिंग की स्थापना भी की थी. जिसे खरौद में लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही सतनामी समाज का पवित्र धार्मिक स्थल और बाबा गुरु घासीदास की जन्म स्थली गिरौदपुरी भी इसी इलाके में है. वहीं यह इलाका महानदी और हसदेव का संगम वाला भी. आज इस इलाके की पहचान पावर हब के रूप में है. क्योंकि यहां सबसे ज्यादा पावर प्लांट हैं.
लगातार चार बार सांसद रहीं मिनीमाता
जांजगीर-चांपा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था. तब इस सीट पर कांग्रेस अमर सिंह सहगल और मिनीमाता सांसद चुने गए थे. इसके बाद 1962 में फिर अमर सिंह और मिनीमात ही चुनाव जीते. 1967 और फिर 71 में कांग्रेस की मिनीमाता लागातार चुनाव जीत कर संसद पहुँची. 1972 में मिनीमाता की असमय मौत के बाद यहां उपचुनाव हुए. इसमें भी कांग्रेस को सफलता मिली और भगतराम मनहर यहां सांसद चुने गए. सन् 1977 में आपातकाल के बाद जब चुनाव हुए थे तब कांग्रेस अपने गढ़ वाली इस सीट से भी उड़ गई. आपातकाल की आंधी में जनता दल के मदन लाल गुप्ता चुनाव जीतकर संसद पहुँचे. हालांकि 1980 में कांग्रेस की आसानी से वापसी हो गई है. रामगोपाल तिवारी यहां से चुनाव जीते.
बसपा संस्थापक कांशीराम ने लड़ा था अपना पहला चुनाव
सन् 1984 यह जांजगीर लोकसभा चुनाव का ऐतिहासिक वर्ष था. क्योंकि इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए यूपी से कांशीराम जांजगीर आए थे. कांशीराम ने बसपा का प्रभाव जमाने छत्तीसगढ़ के जांजगीर को इसलिए चुना था क्योंकि यह इलाका अनुसूचित जाति वर्ग बाहुल्य इलाका था. लिहाजा बसपा को खड़ा करने अपने संभावित हार को भी जानते हुए कांशीराम जांजगीर पहुँचे थे. 1984 में जब यहां चुनाव तो कांग्रेस एक बार फिर विजयी रही. कांग्रेस के प्रभात मिश्र यहां से चुनाव जीते. बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर थी. जबकि कांशीराम तीसरे नंबर पर थे.
दिलीप सिंह जूदेव ने खोला भाजपा का खाता
सन् 1989 में कांग्रेस का वर्चस्व दिलीप सिंह जूदेव खत्म किया था. जशपुर राजघराने के कुमार दिलीप सिंह को भाजपा ने यहां मैदान में उतारा. दिलीप सिंह तब युवा लेकिन बेहद तेज-तर्रार नेता के तौर इलाके में अपने को स्थापित कर चुके थे. दिलीप जूदेव ने पार्टी आलाकमान को नाउम्मीद नहीं किया और रिकार्ड जीत दर्ज कर इस सीट से भाजपा का खाता खोल दिया. हालांकि, इसके बाद 1991 में हुए चुनाव में कांग्रेस के भवानी लाल वर्मा विजयी होकर संसद पहुँच गए. लेकिन 1996 में फिर से बीजेपी ने यहां वापसी की और मनहरण लाल पाण्डेय यहां सांसद चुने गए.
चरणदास महंत ने कराई कांग्रेस की वापसी
सन् 1998 में इस सीट पर कांग्रेस की वापसी डॉ. चरणदास महंत ने कराई. वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष महंत यहां से लगातार दो बार सांसद चुने गए. 98 और 99 में लगातर वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते. लेकिन 2004 में महंत भाजपा के करुणा शुक्ला के हाथों हार गए. इस सीट पर मिनीमात के बाद करूणा शुक्ला चुनाव जीतने वाली दूसरी महिला थीं.
2009 में बदला जांजगीर सीट का ताना-बाना
वर्ष 2009 में हुए परिसीमन के बाद आरक्षित सांरगढ़ लोकसभा सीट को विलोपित कर जांजगीर लोकसभा सीट का गठन किया गया था. इसके साथ ही कोरबा लोकसभा सामान्य सीट के रूप में अस्तिव में आई थी. आरक्षित सीट होने का भाजपा को मिला फायदा. परिसीमन के बाद हुए जांजगीर लोकसभा सीट पर भाजपा लागतार दूसरी बार चुनावी जीती और पहली बार सांसद चुनी गईं कमला पाटले. इसके बाद 2014 में मोदी लहर में एक बार फिर भाजपा की टिकट पर कमला पाटले चुनाव जीत गईं. इस तरह इस सीट पर लगातार तीन बार से बीजेपी का कब्जा है.
2019 में कांग्रेस-भाजपा के साथ बसपा का मुकाबला
2019 के इस चुनाव में भाजपा ने मौजूदा सांसद कमला पाटले की टिकट काट चेहरा बदल दिया. भाजपा ने यहां इस बार अपने पूर्व सांसद गुहाराम अजगले पर भरोसा जताया है. तो वहीं कांग्रेस ने 6 बार के सांसद रहे परसराम भारद्वाज के बेटे रवि भारद्वाज को प्रत्याशी बनाया है. एक तरह कांग्रेस पिता की विरासत बेटे के हवाले कर दिया है. लेकिन बसपा से तीन बार के विधायक रहे दाऊराम रत्नाकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है. दाऊराम रत्नाकर बसपा-जोगी कांग्रेस गठबंधन का प्रत्याशी है. लिहाजा यहां इस बार प्रत्याशियों के मुकाबला बेहद दिलचस्प रहेगा. अब देखना को इस त्रिकोणीय संघर्ष में जीत किसकी होती है. कांग्रेस, भाजपा या बसपा की.
8 विधानसभा में 4 पर कांग्रेस काबिज
जांजगीर लोकसभा में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं. इनमें जांजगीर जिले की 6 विधानसभा सीटें- जांजगीर, चंद्रपुर, सक्ति, अकलतरा, पामगढ़ और जैजैपुर, जबकि बलौदाबाजार जिले की दो सीटें कसडोल और बिलाईगढ़ शामिल हैं. इनमें चार सीटें कांग्रेस के पास हैं, तो दो सीटें बीजेपी और दो सीटें बीएसपी के पास है.