रायपुर. प्रदेश के नए-नवेले कोरबा लोकसभा क्षेत्र को बने महज 10 साल ही हुए हैं. यह सीट छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के 9 साल बाद अस्तित्व में आया है. सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीट का उदय एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीट सारंगढ़ के विलोपन के साथ हुआ. बतौर कोरबा का इतिहास महज दो चुनावों का है. इसमें एक बार कांग्रेस तो एक बार बीेजेपी को जीत मिली है. यह इलाका अजीत जोगी का प्रभाव वाला भी, क्योंकि मरवाही विधानसभा की सीट भी कोरबा लोकसभा के हिस्से है. तो ऐसे राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले सीट पर क्या है सियासी समीकरण…सत्ता का संग्राम में कौन मारेगा बाजी?

न केवल छत्तीसगढ़ का बल्कि कहें देश की ऊर्जाधानी से देश के कई हिस्सों को बिजली सप्लाई होती है. ताप नगरी कोरबा कोयले का खान है. यहां दुनिया की सबसे उच्चतम स्तर का कोयला मिलता है. वैसे इस इलाके में छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे बड़ा बांध मिनीमाता बांगो डैम भी है. हसदेव नदी से सिंचित यह इलाका भारत के विभिन्न सांस्कृतिक रंगों को अपने समेटे हुआ है. भले ही कोरबा लोकसभा का संसदीय इतिहास एक दशक ही पुराना है लेकिन यह राजनीतिक तौर पर समृद्ध इलाका. छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी से नेता इसी सीट से निकले हैं. इतना सबकुछ होने के बाद भी कोरबा विकास के अनेक पैमानों पर बेहद उपेक्षित है.

सारंगढ़ के विलोपन के साथ कोरबा का उदय

कोरबा लोकसभा सीट का उदय सारंगगढ़ लोकसभा सीट के विलोपन के साथ हुआ. साल 2009 में जब नए लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन हुआ तो छत्तीसगढ़ का एससी आरक्षित सीट सारंगढ़ विलोपित कर दिया. सारंगढ़ की जगह फिर कोरबा अनारक्षित वर्ग की लोकसभा सीट बनी है. सारंगढ़ लोकसभा से कुछ विधानसभा सीटें जांजगीर के हिस्से आ गई, जबकि कुछ रायगढ़ में चली. इसी तरह जांजगीर एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीट हो गई, जबकि कोरबा में बिलासपुर लोकसभा की मारवाही और सरगुजा लोकसभा की कोरिया जिले की विधानसभा सीटें मिला दी गई.

परसराम भारद्वाज ने खेली लंबी पारी

कोरबा लोकसभा क्षेत्र के निर्माण से पहले सारंगढ़ संसदीय क्षेत्र आपातकाल के बाद देश के राजनीतिक मानचित्र पर आया था. सारंगढ़ लोकसभा में 1977 में हुए पहले चुनाव में भारतीय लोकदल के गोविंदराम मिरी ने कांग्रेस के गोंदिल प्रसाद अनुरागी को 12 हजार मतों के अंतर से पराजित कर पहले सांसद बने. लेकिन इसके बाद 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल और पंडित शिवप्रसाद तिवारी की प्रेरणा से राजनीति में आए परसराम भारद्वाज ने कांग्रेस को पहली जीत दिलाई. इसके बाद लगातार चार चुनावों में जीत दर्ज कर परसराम भारद्वाज ने सांसद के रूप में एक लंबी पारी खेली.

खुंटे ने खोला भाजपा का खाता

परसराम भारद्वाज ने 1998 को हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के पीआर खुंटे से करीबन 6 हजार वोटों के अंतर से जीत पाए थे. लेकिन एक साल बाद ही 1999 को हुए लोकसभा चुनाव में पीआर खुंटे ने सूद सहित वसूली करते हुए भारद्वाज को 51 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया. लेकिन इसके बाद प्रदेश के बदले राजनीतिक माहौल में विवादों में घिरे खुंटे भाजपा छोड़कर कांग्रेस चले गए, लेकिन सारंगढ़ की सीट भाजपा के पाले में ही रही, जब 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में गुहाराम अजगले ने कांग्रेस के परसराम भारद्वाज को 59 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया. इस तरह गुहाराम अजगले सारंगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतिम सांसद रहे.

कोरबा में पहली जीत कांग्रेस की

2009 में जब कोरबा लोकसभा सीट पर पहला चुनाव हुआ तो कांग्रेस को यहां से जीत मिली. कांग्रेस दिग्गज नेता वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत यहां से सांसद चुने गए. तब केन्द्र में कांग्रेस की लगातार दूसरी बार सरकार बनी थी. लेकिन 2014 में मोदी लहर में देश भर में कांग्रेस की हार का असर कोरबा में भी दिखा है और भाजपा के बंशीलाल महतों के हाथ चरण दास महंत चुनाव हार गए.

अब महंत की पत्नी चुनाव मैदान में

2019 के चुनाव में कांग्रेस ने डॉ. चरण दास महंत की जगह उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा ने मौजूदा सांसद महतो की टिकट काटकर नए चेहरे ज्योतिनंद दुबे को मैदान में उतारा है. दोनों ही पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं. भले ही इस सीट से महंत की पत्नी चुनाव लड़ रही हैं लेकिन प्रतिष्ठ दांव डॉ. चरण महंत का ही है. कांग्रेस ने इस सीट को जीतने पूरी ताकत झोंक दी है. वैसे सीट से अजीत जोगी भी पहले चुनाव लड़ने वाले थे, लेकिन उन्होंने अब अपने कदम वापस खींच लिए हैं. लिहाजा इससे कांग्रेस को फायदा इस सीट पर मिल सकता है. वहीं प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के आसरे कांग्रेस को कोरबा लोकसभा जीतने का पूरा भरोसा है.

तीन जिलों में फैली कोरबा लोकसभा में विधानसभा सीटें

कोरबा लोकसभा सीट के अंतर्गत कोरबा जिले की चार कोरबा, कटघोरा, रामपुर व पाली-तानाखार, कोरिया जिले की तीन मनेंद्रगढ़, भरतपुर सोनहत व बैकुंठपुर और बिलासपुर जिले की मरवाही विधानसभा सीट आती है. 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के पक्ष में 4-4 सीटें आई थी, लेकिन 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में मामला एकतरफा हो गया, और आठ में से 6 कांग्रेस के पास और एक-एक सीट भाजपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) को गई है.