रायपुर.हिन्दू धर्म के मतानुसार सृष्टि रचना का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था, इसलिए हमारा हिन्दू वर्ष इसी दिन से शुरू होता है, जिसका पूर्वार्द्ध छह माह आश्विन कृष्ण अमावस्या को समाप्त होता है और उत्तरार्द्ध भाग आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है. वर्ष के इन दोनों भागों के आरंभ में हमारे पूर्वज महाशक्ति की आराधना किया करते थे.

. नवरात्रि के संबंध में कहा गया है कि ऋतुएं इन दिनों रजस्वला होती हैं. जिस प्रकार रजस्वला स्त्री का उस काल में आहार-विहार और आचार-विचार में विशेष ध्यान रखा जाता है, उसी प्रकार हमें भी इन दिनों में विशेष सावधानी बरतने का आदेश दिया गया है. आरोग्य शास्त्र के आचार्यों का कहना है कि चैत्र के महीनों में सूक्ष्म ऋतु परिवर्तन के परिणामस्वरूप शारीरिक स्वास्थ्य की दीवारें हिल जाती हैं. आयुर्वेद के अनुसार शरीर शोधन कार्यों के लिए ये दो महीने बहुत ही उपयुक्त हैं, इसलिए इस काल में आहार-विहार में विशेष संयम रखना चाहिए.

इन नौ दिनों को शारीरिक, मानसिक व आत्मिक सब प्रकार की उन्नति की दृष्टि से लाभप्रद माना गया है. यह समय गायत्री साधना के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है. इन नौ दिनों में उपवास रख कर अनुष्ठान करना चाहिए. साधना के साथ उपवास के लिए एक समय बिना नमक का अन्नाहार, एक समय फलाहार या अपनी सामर्थ्य के अनुकूल उपवास करना चाहिए. साधना का अधिकांश भाग प्रात:काल ही पूरा कर लेना चाहिए. समय के अभाव व अन्य कारणों से सायंकाल को भी किया जा सकता है. इनके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य, भूमिशयन, बाल न कटवाना आदि नियमों का, जहां तक संभव हो, पालन करना चाहिए. आचार, विचार और व्यवहार को पवित्र रखना चाहिए. अनुष्ठान की समाप्ति पर अंतिम दिन जप का शतांश हवन, ब्रह्मभोज, कन्या भोज और प्रसाद वितरण करना चाहिए.