सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग के साथ रेप की कोशिश मामले में 17 मार्च को दिए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के विवादित फैसले पर रोक लगा दी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप की कोशिश के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि’ ‘ब्रेस्ट पकड़ना’ और पजामे का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का प्रयास नहीं है’. अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस संवेदनहीनता बताया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि फैसले में कुछ टिप्पणियों को देखकर दुख हुआ. इसके साथ ही इस मामले पर उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह फैसला लिखने वाले की संवेदनशीलता की कमी को दिखाता है. हाईकोर्ट ने इस फैसले को तुरंत नहीं सुनाया गया. इसे सुरक्षित रखने के 4 महीने बाद सुनाया गया. हम आमतौर पर इस स्टेज पर आकर फैसले पर रोक लगाने में हिचकिचाते हैं.
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हाईकोर्ट के आदेश कुछ पैराग्राफ 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां कानून के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और अमानवीय दृष्टिकोण को दिखाती हैं, इसलिए हम उक्त पैराग्राफ में की गई टिप्पणियों पर रोक लगाते हैं.” कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है. उसकी याचिका को भी इसके साथ ही जोड़ा जाए. उससे दोनों पर साथ सुनवाई आगे बढ़ेगी. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र, उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी करते हैं. कोर्ट ने कहा कि हम दो हफ्ते बाद मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे.
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दरअसल, आरोप था कि एक नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्टस को पकड़ा गया और पायजामे का नाड़ा तोड़कर घसीटते हुए पुलिया के नीचे ले जाया गया. मामले में दो आरोपियों पर रेप की कोशिश करने का आरोप लगा था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़ित के ब्रेस्ट को पकड़ना, और पाजामे के नाड़े को तोड़ने के आरोप के चलते ही आरोपी के खिलाफ रेप की कोशिश का मामला नहीं बन जाता.
फैसला देने वाले जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह कहा था कि इन आरोप के चलते यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो बनता है. लेकिन इसे रेप का प्रयास नहीं कह सकते.
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