अनिल सक्सेना, रायसेन। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) का रायसेन जिला मुख्यालय (Raisen District Headquarters) स्थित तहसील कार्यालय (Tehsil Office) इन दिनों अपनी कार्यकुशलता और परिश्रमी (Efficient and Hardworking) के लिए चर्चा का केंद्र बना हुआ है। क्योंकि यहां जैसे-जैसे शाम का अंधेरा बढ़ता है, तहसील कार्यालय और नायब तहसीलदार कार्यालय की रौनक उसके साथ-साथ बढ़ जाती है। अब इसके पीछे की असल वजह क्या है? आइए जानते हैं।

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आइए पहले मामला जानते हैं

दरअसल, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने योजना बनाई थी कि ऑनलाइन नामांतरण की प्रक्रिया को 15 दिन में रजिस्ट्री के बाद पूरा किया जाएगा। लेकिन यह प्रक्रिया रायसेन में ठीक से कार्य नहीं कर रही है। यहां अक्सर वेबसाइट पर नामांतरण का स्टेटस पेंडिंग या फिर खारिज दिखता है। जबकि मुख्यमंत्री ने कहा था कि रजिस्ट्री के बाद बिना दस्तावेज़ के भी नामांतरण हो जाएगा। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि तहसीलदार और पटवारी इस प्रक्रिया को सफल बनाने में क्यों विफल हो रहे हैं? जब लल्लूराम डॉट की टीम ने गहराई में जाकर पड़ताल की तो सामने आया कि, आम लोग ऑफलाइन आवेदन लेकर पूरी प्रक्रिया का पालन करते हैं ताकि उनका नामांतरण हो सके। लेकिन तहसील कार्यालय में सैकड़ों मामले पेंडिंग हैं, जबकि यह ऑनलाइन प्रक्रिया होनी चाहिए थी।

ऑफलाइन नामांतरण और भ्रष्टाचार का खेल


रायसेन तहसील में ऑनलाइन नामांतरण आवेदन के बावजूद या तो उसे सिस्टम पर रिजेक्ट कर दिया जाता है या वह उसी स्थिति में रहता है। ऐसे में तहसीलदार और पटवारी अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए ऑफलाइन नामांतरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दे रहे हैं। पटवारी अपने निजी सहायकों के माध्यम से नामांतरण कराने वालों को बुलाते हैं और दस्तावेजों का सत्यापन करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब ऑनलाइन दस्तावेज़ डाले गए हैं, तो फिर ऑफलाइन दस्तावेज़ों का सत्यापन क्यों किया जाता है? इतना ही नहीं पटवारी द्वारा 10 हजार, 20 हजार या फिर संपत्ति के हिसाब से रकम की मांग की जाती है। ऐसे में जो सक्षम हैं वो झंझटों से बचने के लिए इस प्रणाली को अपनाते हैं, जबकि आम आदमी जिनके पास इतनी राशि नहीं होती, वे तहसील कार्यालय के चक्कर लगाते रह जाते हैं।

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रात के अंधेरे में होता है सीमांकन की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार


तहसील कार्यालय में सीमांकन के लिए भी ऑनलाइन आवेदन की व्यवस्था है। बावजूद इसके यहां भी वही स्थिति है। सिस्टम के अनुसार नामांतरण की प्रक्रिया तहसील कार्यालय में चलती है। जिसमें सीमांकन के लिए भी निजी सेवाएं ली जाती हैं, सेटेलाइट सीमांकन के लिए निजी लोग अपनी मशीन लेकर आते हैं और इसके लिए 3 से 10 हजार रुपए की राशि ली जाती है। इसके साथ ही पटवारी और गिरदावर का मेहनताना अलग से लिया जाता है। यह सब काम निजी सहायक के माध्यम से होता है और पटवारी गिरदावर केवल हस्ताक्षर करते हैं। अगर दस्तावेजों की जांच किसी हस्तलिपि विशेषज्ञ से कराई जाए, तो सच्चाई आपके होश उड़ा देगी।

बता दें कि, तहसील कार्यालय में आय जाति मूलनिवासी प्रमाण पत्र बनाने की एक समानातर व्यवस्था है। यहां आवेदन जमा करने के बाद प्रमाणपत्र बनवाने तहसील के परिसर में टेबिल लगाए बैठे लोगों का नाम बताया जाता है। जहां कहते हैं ‘वहां चले जाओ बन जाएगा’। इसके बाद एक निश्चित राशि तय होने के बाद अगले दिन यह प्रमाणपत्र वो बाहरी कर्मचारी बनवा देते हैं। जिनका तहसील, नायव तहसीलदार कार्यालय सहित लोक सेवा केंद्र तक जुगाड़ है। इतना ही नहीं यह लोग पटवारी गिरदावर की टीप भी लगवा लेते है। बाकी यदि आप अपना काम एक निश्चित प्रक्रिया के साथ कराना चाहते है तो फिर लगाते रहे दफ़्तरों के चक्कर।

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रात के अंधेरे में अपना काला चिट्ठा करते हैं साफ

दिन भर फील्ड में रहने के बाद जब रात का अंधेरा बढ़ता है तो अपने निजी रखें सहायकों के साथ फ़ाइल लेकर सभी जमा होना शुरू हो जाते हैं। इसमें तहसील कार्यालय के बाबू भी आते हैं। फिर ऑफलाइन नामांतरण की फाइलों को सुलझाना शुरू करते हैं। जिन लोगों के काम दिन के उजाले में नहीं होते, उन्हें ये सारी टीम रात के अंधेरे में रोशन कमरों में बैठकर निपटाती है।

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