सुप्रीम कोर्ट(Suprem Court) ने नगदी मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा(Yashwant Verma) के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया. शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले की जांच एक आंतरिक समिति द्वारा की जा रही है, और रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) के पास कार्रवाई के लिए कई विकल्प उपलब्ध होंगे. इसलिए, इस याचिका पर विचार करना उचित नहीं समझा गया.
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न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने अधिवक्ताओं मैथ्यूज जे नेदुम्परा और हेमाली सुरेश कुर्ने द्वारा प्रस्तुत याचिका को “समय से पहले” दायर किया गया बताया. पीठ ने स्पष्ट किया कि आंतरिक जांच अभी भी चल रही है. यदि जांच रिपोर्ट में कोई अनियमितता पाई जाती है, तो एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया जा सकता है या मामले को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है. इस विषय पर आज चर्चा करने का उचित समय नहीं है.
वकील नेदुम्परा ने अन्य मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि केरल में एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई है. POCSO मामले में, एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश पर आरोप लगाए गए, लेकिन पुलिस आरोपी का नाम दर्ज करने में असमर्थ रही. यह स्थिति तब और चिंताजनक हो जाती है जब आरोप की गंभीरता को ध्यान में रखा जाए. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केवल पुलिस ही इस मामले की जांच कर सकती है, जबकि अदालतें इस कार्य में संलग्न नहीं हो सकतीं. इस पर न्यायमूर्ति ओका ने सुझाव दिया कि संबंधित इन-हाउस जांच प्रक्रिया को निर्धारित करने वाले दोनों फैसलों का अध्ययन किया जाए, क्योंकि प्रक्रिया पूरी होने के बाद सभी विकल्प उपलब्ध होंगे.
नेदुम्परा ने इसके बाद यह सवाल उठाया कि “आम जनता बार-बार जानना चाहती है कि 14 मार्च को एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई, गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई, और जब्ती क्यों नहीं की गई. इस घोटाले की प्रक्रिया में एक सप्ताह का समय क्यों लगा? कॉलेजियम ने यह क्यों नहीं बताया कि उसके पास वीडियो जैसी सामग्री मौजूद है?”
पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिका का अवलोकन किया गया है और उठाए गए प्रश्नों पर आंतरिक जांच चल रही है. हालांकि, इस स्तर पर वे हस्तक्षेप नहीं कर सकते, और भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास सभी विकल्प उपलब्ध हैं. नेदुम्परा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह जानकारी आम जनता के लिए समझना कठिन है. इस पर न्यायमूर्ति ओका ने सुझाव दिया कि आम जनता को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है.
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को वकील नेदुम्परा द्वारा याचिका का उल्लेख करने के बाद तत्काल सुनवाई करने से मना कर दिया. नेदुम्परा और उनके तीन सहयोगियों ने रविवार को एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने दिल्ली पुलिस को मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की थी.
यह घटना तब चर्चा का विषय बनी जब 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित निवास के स्टोर रूम में आग लग गई, जिसके परिणामस्वरूप वहां से बड़ी संख्या में जले हुए नोट बरामद होने की जानकारी मिली. इस घटना ने न्यायपालिका में हड़कंप मचा दिया है और अब इसकी जांच में नए मोड़ आ रहे हैं.
CJI खन्ना ने जांच के लिए बनाई है कमेटी
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए तीन जजों की एक समिति का गठन किया है, जिसकी अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू कर रहे हैं. इस समिति में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन भी शामिल हैं. हाल ही में, समिति ने जस्टिस वर्मा के निवास का निरीक्षण किया और घटनास्थल का मुआयना किया. गुरुवार को, समिति ने दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक अतुल गर्ग से भी पूछताछ की, जिनके बयान दर्ज किए गए. सूत्रों के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने उस क्षेत्र को सील कर दिया है जहां अधजले नोट पाए गए थे, और इसकी वीडियोग्राफी भी की गई है.
जस्टिस यशवंत वर्मा ने खारिज किए आरोप
जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को पूरी तरह से अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया है कि न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने कभी स्टोर रूम में कोई नकदी रखी. उनका कहना है कि यह सब उनकी छवि को धूमिल करने की एक साजिश है. दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसका विरोध किया है. वकीलों ने प्रदर्शन करते हुए मांग की है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ पहले CBI जांच होनी चाहिए और उनके ट्रांसफर को रोकना चाहिए.
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