विशेष रिपोर्ट राजकुमार भट्ट

रायपुर. अबकी बार हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित चार सीटों में से एक रायगढ़ की. उस सीट की जो भाजपा का गढ़ बन चुकी है. एक ऐसी सीट पर की कहानी जिस पर राजपरिवार का प्रभाव शुरुआती दौर से अब तक रहा है. यह सीट 4 रियासतों के प्रभाव वाली सीट रही है. वैसे इस सीट पर भाजपा ने लगातार चार चुनावों में जीत हासिल करने वाले सांसद का टिकट काटकर नए चेहरे पर भरोसा जताया है. वैसे कांग्रेस ने भी नए चेहरे और मौजूदा विधायक पर भरोसा जताया है. अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस भाजपा के इस गढ़ में सेंध लगा पाएगी ? जानिए आखिर क्या है रायगढ़ का सियासी समीकरण…

दुनिया पर भर में ढोकरा कला के लिए प्रसिद्ध रायगढ़ लोकसभा की पहचान कला और संस्कृति की नगरी के तौर भी है. देश के नामचीन कत्थक घरानों में से एक रायगढ़ कत्थक घराना भी है. राजा चक्रधर की नगरी रायगढ़ में वैसे चार रियासतों का प्रभाव रहा है. इसमें जशपुर राजघराना, धर्मजयगढ़ राजघराना, सारगंढ़ राजघराना और रायगढ़ राजघराना रहा है. रायगढ़ कोयले की खान भी है. यह इलाका उड़ीसा की सीमा से जुड़ा है. यहां छत्तीसगढ़ के साथ-साथ उड़ीसा की संस्कृति का भी व्यापक असर दिखता है. इस इलाके में दुनिया का सबसे प्राचीन रॉक पैटिंग वाला गुफा सिघनपुरी भी देखने को मिलता है. वैसे इस इलाके में शुरुआती दौरे से जूदेव राजपरिवार का बोलबाला रहा है.

सारंगढ़ राजपरिवार से जुड़ीं पुष्पा देवी सिंह

राजनीतिक पृष्ठभूमि

1947 में अंग्रेजों से आजादी के बाद भारतीय संघ में सबसे पहले शामिल होने वाला रायगढ़ राज्य शुरुआती दिनों में सारंगढ़ लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था, जो परिसीमन के बाद 1962 में लोकसभा क्षेत्र बना. 1952 व 1957 में जशपुर विधायक रहे जशपुर राजघराने के विजयभूषण सिंहदेव 1962 में अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे और जीत दर्ज कर रायगढ़ लोकसभा के प्रथम सांसद बने. लेकिन अगले चुनाव में सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र सिंह की बेटी रजनीगंधा देवी ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरीं और जीत हासिल की. राजपरिवार का दबदबा आने वाले चुनावों में भी जारी रहा, जब 1980, 1984 और 1991 में हुए चुनाव में राजा नरेश चंद्र के दूसरी बेटी और रजनीगंधा की बहन पुष्पादेवी सिंह ने जीत हासिल की.

आपातकाल के बाद टूटा कांग्रेस का वर्चस्व

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1974 में आपातकाल लगाए जाने के गुस्सा मतदाताओं ने 1977 के चुनाव में दिखाया, जब भारतीय लोक दल के प्रत्याशी नरहरि प्रसाद साय ने कांग्रेस के सांसद उम्मेद सिंह राठिया को करीबन 20 हजार वोटों से पराजित किया. इसके बाद कांग्रेस ने फिर से वापसी की, लेकिन 77 के चुनाव ने कांग्रेस की जमीन कमजोर कर दी. इसका फायदा 1989 में भारतीय जनता पार्टी को मिला, जब वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय ने कांग्रेस की पुष्पादेवी को 21 हजार से ज्यादा मतों से पराजित कर भाजपा का खाता खोला.

अजीज जोगी पहली बार इसी सीट से पहुंचे थे लोकसभा

रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र का 1998 में हुआ चुनाव इस लिहाज से खास था कि 1986 में कांग्रेस में प्रवेश से लेकर 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे अजीत जोगी ने नंद कुमार साय को 5 हजार से कम वोटों के अंतर से पराजित कर लोकसभा में प्रवेश किया. अजीत जोगी एक तरह से कांग्रेस को इस सीट पर वापसी कराई थी.

भाजपा सांसद विष्णुदेव साय

विष्णुदेव साय ने बना दिया रायगढ़ को भाजपा का गढ़

अगले ही साल 1999 में हुए चुनाव में भाजपा ने नंदकुमार साय के स्थान पर विष्णुदेव साय के चुनाव मैदान में उतारा, वहीं कांग्रेस ने अजीत जोगी की जगह वापस पुष्पादेवी सिंह पर भरोसा जताया. लेकिन पुष्पादेवी सिंह की फिर से हार हुई और विष्णुदेव साय ने भाजपा की सीट पर वापसी करा दी. इसके बाद लगातार विष्णुदेव चुनाव में जीत हासिल करते रहे. साल 2004 में कांग्रेस के रामपुकार सिंह को, साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के युवा विधायक हृदयराम राठिया को और 2014 के चुनाव में आरती सिंह को दो लाख से अधिक मतों से विष्णुदेव साय ने पराजित किया.

केन्द्रीय मंत्री का टिकट काट भाजपा ने महिला प्रत्याशी को उतारा

भाजपा इस सीट पर सबसे चौंकाने वाला फैसला करते हुए बड़ा रिस्क लिया है. क्योंकि भाजपा ने 4 बार के सांसद और केन्द्रीय मंत्री विष्णुदेव साय का टिकट काट यहां से महिला प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है. भाजपा ने इस बार यहां से जशपुर जिला पंचायत अध्यक्ष गोमती साय को चुनावी मैदान में उतारा है. गोमती साय पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं. वहीं कांग्रेस ने भी नया चेहरा लेकिन अपने विधायक पर भरोसा जताया है. कांग्रेस ने यहां से धरमजयगढ़ विधायक लालजीत सिंह राठिया को प्रत्याशी बनाया है.

लोकसभा की 8 विधानसभा पर कांग्रेस काबिज

रायगढ़ लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीटें हैं- इसमें रायगढ़ जिले की 5 विधानसभा सीटें- रायगढ़, खरसिया, सारंगगढ़, धर्मजयगढ़, लैलूंगा. जबकि जशपुर जिले की तीन सीटें- पत्थलगाँव, कुनकुरी और जशपुर हैं. इन सभी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. ऐसे में भाजपा के लिए लोकसभा का चुनाव इस बार यहाँ से आसान नहीं है. प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद यहां कांग्रेस की लहर दिखाई दे रही है. वहीं जशपुर राजपरिवार का झुकाव भी बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर देखने को मिला था. लिहाजा यहां इस बार मोदी के प्रभाव के बीच बाजी कौन मारेगा यह देखना होगा ?