रायगढ़. छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के विकास और ऊर्जा संरक्षण के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र राज्य विध्युत उत्पादन कंपनी (महाजेनको) की गारे पेलमा 2 (जीपी 2) कोयला खदान परियोजना में पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय सहभागिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. साथ ही क्षेत्र में रोजगार और स्वास्थ्य कल्याण के कार्य भी चलाए जा रहे है. परियोजना में विलम्ब के कारण इन जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से परियोजना विस्तार के कई गांव कई समय वंचित हो रहे है. 

ज्ञात हो कि इस परियोजना के लिए सभी कानूनी एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया है, जिससे स्थानीय समुदाय, पर्यावरण और औद्योगिक प्रगति के बीच संतुलन बना रहे.

ग्राम सभा की सहमति और विधिक प्रक्रियाएं

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) से वन स्वीकृति प्राप्त करने के लिए ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य होती है. जीपी 2 परियोजना ने इस प्रक्रिया का पूर्णतः पालन करते हुए वर्ष 2018 और 2019 में ग्राम सभा और ग्राम पंचायत की स्वीकृति प्राप्त की गई है. इन बैठकों का आयोजन संबंधित तहसीलदार और उप-मंडल दंडाधिकारी (एसडीएम) की निगरानी में हुआ. 28 नवंबर, 2019 को रायगढ़ कलेक्टर ने सभी आवश्यक दस्तावेज सरकार को सौंपे, जिन्हें बाद में प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) रायपुर को भेजा गया.

इसके बाद, अप्रैल 2022 में, सभी आवश्यक अनुमोदनों के साथ, यह प्रस्ताव एमओईएफ एंड सीसी को भेजा गया. मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने सभी दस्तावेजों और तथ्यों की गहन समीक्षा के बाद मई 2022 में चरण-I वन स्वीकृति प्रदान की. तीन वर्षों तक किसी भी स्तर पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई. जनवरी 2023 में, परियोजना को अंतिम चरण-II वन स्वीकृति प्राप्त हुई, और जुलाई 2024 में यह मंजूरी राज्य सरकार द्वारा जारी की गई.

न्यायिक निर्णय और परियोजना की वैधता

पर्यावरण संबंधी सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए, इस परियोजना को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की समीक्षा में भी विधिक रूप से मान्य ठहराया गया. 15 जनवरी, 2024 को एनजीटी ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि वन स्वीकृति एवं जल दोहन अनुमति पूरी तरह से वैध है. इसके अलावा, पर्यावरण स्वीकृति (ईसी) को लेकर उठाई गई चुनौतियों में भी वन स्वीकृति को लेकर कोई आपत्ति नहीं दर्ज की गई.

पेसा अधिनियम और खनन अनुमति

यह ध्यान देने योग्य है कि प्रमुख खनिजों के संबंध में पेसा अधिनियम की भूमिका सीमित होती है, क्योंकि खनिज और खनन गतिविधियाँ केंद्रीय खनन कानून, माइन्स एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1957 (एमएमडीआर एक्ट) के अंतर्गत आती हैं.

ग्राम सभा को सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन में सिफारिश देने का अधिकार है, लेकिन प्रमुख खनिज खनन पट्टों का अंतिम निर्णय राज्य और केंद्र सरकार द्वारा लिया जाता है. जीपी 2 परियोजना में ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करने के बाद प्रदान किया गया खनन पट्टा यह स्पष्ट करता है कि पेसा अधिनियम का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है.

समुदाय और विकास के लिए सकारात्मक प्रभाव

यह परियोजना न सिर्फ महाराष्ट्र की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक होगी, बल्कि इससे राज्य के राजस्व में भी वृद्धि होगी. साथ ही, स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे, जिससे गांवों के आर्थिक विकास को बल मिलेगा.

राज्य एवं केंद्र सरकार की नीतियों के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि परियोजना के संचालन में वन एवं पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए. जीपी 2 परियोजना, पारदर्शिता, विधिक प्रक्रियाओं के पालन और स्थानीय समुदाय के हितों को ध्यान में रखते हुए, सतत विकास के लक्ष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है.