दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना(VK Saxena) के खिलाफ मानहानि मामले में साकेत कोर्ट ने आज सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर(Megha Patkar) को दो महत्वपूर्ण राहतें प्रदान की हैं. कोर्ट ने उन पर लगाए गए 10 लाख रुपये के जुर्माने को घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया. इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने मेधा पाटकर की उम्र को ध्यान में रखते हुए उन्हें एक वर्ष के लिए प्रोबेशन पर रखने का निर्णय लिया. इससे पहले, सेशन कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि को बनाए रखा था.

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साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने 70 वर्षीय मेधा पाटकर को एक वर्ष के अच्छे आचरण की शर्त पर प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश दिया है. इसके लिए उन्हें अच्छे आचरण का बॉंड भरना होगा. न्यायालय ने उनकी उम्र, पूर्व में किसी दोष सिद्ध न होने और किए गए अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया है. इसके साथ ही, कोर्ट ने उन पर लगाए गए 10 लाख रुपये के जुर्माने को घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया है, जिसे उन्हें अदा करना होगा.

साल 2000 में दर्ज किए गए इस मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए पांच महीने की कैद की सजा सुनाई थी. मेधा पाटकर ने इस सजा और दोषसिद्धि के खिलाफ याचिका दायर की थी. आज मेधा पाटकर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

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प्रोबेशन एक ऐसा उपाय है जो अपराधियों के लिए गैर-संस्थागत व्यवहार को दर्शाता है. यह एक सशर्त सजा का निलंबन है, जिसमें दोषी ठहराए जाने के बाद अपराधी को जेल में भेजने के बजाय अच्छे आचरण के आधार पर रिहा किया जाता है.

पिछले सप्ताह न्यायालय ने मानहानि के मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा दिए गए दोषी ठहराने के आदेश को स्वीकार कर लिया. वीके सक्सेना ने 24 नवंबर, 2000 को पाटकर के खिलाफ मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में शिकायत दर्ज कराई थी.

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पिछले वर्ष 24 मई को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि पाटकर के बयानों में सक्सेना को ‘कायर’ के रूप में वर्णित किया गया था और उन पर हवाला लेन-देन में संलिप्तता का आरोप लगाया गया था. यह न केवल अपमानजनक था, बल्कि इससे उनके प्रति नकारात्मक धारणाओं को भी बढ़ावा मिला. इसके अतिरिक्त, शिकायतकर्ता पर यह भी आरोप लगाया गया कि वे गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘गिरवी’ रख रहे हैं, जो उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर एक गंभीर हमला है.

सजा पर चर्चा 30 मई को समाप्त हुई, जिसके बाद 7 जून को सजा का निर्णय सुरक्षित रखा गया. अदालत ने 1 जुलाई को उन्हें पांच महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई, जिसे उन्होंने सेशंस कोर्ट में चुनौती दी.

क्या है मामला

2003 में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ में सक्रिय थीं, जबकि वी.के. सक्सेना उस समय नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज में कार्यरत थे. उन्होंने मेधा पाटकर के विरोध का तीव्र प्रतिरोध किया, जिससे पहला मानहानि मामला उत्पन्न हुआ. मेधा पाटकर ने वी.के. सक्सेना और नर्मदा बचाओ आंदोलन के विज्ञापन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसके जवाब में सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों के लिए दो मानहानि के मामले दर्ज किए.