रायपुर. विश्व को इस समय सबसे अधिक आवश्यकता शांति की है और शांति का मार्ग अहिंसा के बिना संभव नहीं है। भारत ने हर बार अलग-अलग माध्यम से पूरे विश्व को यह बताने की कोशिश की है कि अहिंसा परमो धर्म। आरंभ से अब तक भारत में होने वाले महापुरुषों ने जो भी उपदेश दिया है उन सबके सार में यही है कि अहिंसा ही परम और पहला धर्म है। यह सुनने में छोटा, लेकिन अर्थ में व्यापक ‘अहिंसा’ को समझने और आत्मसात करने के लिए व्यक्ति का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है, क्योंकि हिंसा और हिंसक भावनाओं में आकंठ डूबा व्यक्ति कभी भी अहिंसा को समझ नहीं पाएगा।

अहिंसा हर युग में हर दौर में और हर देश के लिए जरूरी है और इस सत्य का सम्प्रेषण आज भारत से होकर समूचे विश्व में होने लगा है। सच्चाई यह है कि हिंसा विकृति ही दे सकती है फिर वो कोई राष्ट्र हो कोई समाज हो या कोई कुनबा, इसके उलट अहिंसा इन सबको एक सुंदर आकृति देती है।

भगवान महावीर स्वामी द्वारा दिखाए गए मार्ग आज भी उतने ही सत्य और स्पष्ट है, जितना उनके समय में हुआ करता था। अहिंसा जीवन का परम सत्य है। इस मूल मंत्र को जानने और समझने का दावा करने वाले बहुत से लोग आज भी इस बात से अनजान हैं कि हिंसा कितने प्रकार के हो सकते हैं। मोटे तौर पर इतना भी समझ के चलना समाज के लिए हितकर होगा कि किसी को किसी भी तरह का कष्ट दिए बिना उनको उनके पूरे अस्तित्व के साथ सम्मान दें। प्रयास यही होनी चाहिए कि जीवन से लोभ गिरे और उसकी जगह त्याग का समावेश हो।

जब इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। अहिंसा से ही जगत का कल्याण सम्भव है, तब यह समझना और भी प्रासंगिक हो जाता है कि हम यह भी समझें कि हिंसा की श्रेणी में हम किन-किन बातों और घटनाओं को रख सकते हैं। मूक पशु पर किया जाने वाला अत्याचार ही हिंसा नही है। सूक्ष्मता में जाएं तो बहुत सी हिंसा हम समाज, राष्ट्र, विश्व, प्रकृति और खुद के साथ भी करते हैं, जिसका हमें कभी ठीक-ठीक भान नहीं हो पाता।

हमने किसी कुरीति का साथ निभाया तो वो समाज और सभ्यता के प्रति हमारी हिंसा है। यदि हमने अकर्मण्य होकर मोबाइल के साथ अनावश्यक समय व्यतित किया तो वो अपने परिवार और स्वयं के साथ गुप्त हिंसा है। घांस का एक पौधा भी अगर हमारे हाथों से नाहक उखड़ गया वह भी प्रकृति के प्रति हमारी हिंसा है, हमारी चिमनी से निकला धुएं का एक छोटा सा ग़ुबार भी पर्यावरण के लिए हिंसा है। भगवान महावीर स्वामी की जयंती हम सबके लिए यह सोचने का एक सुअवसर है कि हम दुनियां की अंधी दौड़ में कितने हिंसक हो चुके हैं और इस हिंसा को किस तरह से कितना कम किया जा सकता है।

लेखक – संदीप अखिल, सलाहकार संपादक न्यूज 24 मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़