सत्या राजपूत की ग्राउंड रिपोर्ट – अरपा-पैरी के धार…महानदी हे अपार….इंद्रावती ह पखारे तोर पइँया… ये छत्तीसगढ़ का आधार गीत है…राजगीत…इस गीत के माध्यम से यह बताया गया है कि छत्तीसगढ़ की धरा अपार जलधन से भरी हुई है और यह सच भी था किसी समय में…लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि न तो अरपा-पैरी में धार है…और न ही महानदी अपार है। इंद्रावती भी उस स्थिति में नहीं कि वह छत्तीसगढ़ महतारी का पाँव पखार सके।
दरअसल, अपार जल संपदा से परिपूर्ण रहने वाला छत्तीसगढ़ इन दिनों भीषण जल संकट से जूझ रहा है। प्रदेश के 5 जिलों को जल संसाधन विभाग की ओर से खतरनाक स्थिति का माना गया है। राज्य के कई गाँवों की स्थिति बहुत ही भयावह है। जिला मुख्यालयों के कई वार्डों में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। राजधानी रायपुर, जो कि स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल है, यहाँ भी कई वार्डों में जल संकट गहराया हुआ है।
इसी भीषण जल संकट के बीच एक ऐसी खबर भी निकलकर सामने आई जिसने यह लिखने के लिए मजबूर कर दिया है कि ‘पानी नहीं तो शादी नहीं!’… फिल्मों में आपने ऐसी कई स्टोरी देखी होंगी… राजस्थान के दूरस्थ गाँवों से तो ऐसी खबरें आती रहती हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नजदीक जब ऐसी खबर सामने आई तो हैरानी जरूर होती है।
हैरान, परेशान और भविष्य की चिंता को और ज्यादा गहराने वाली खबर रायपुर जिले के आरंग तहसील में रींवा गाँव से आई है। रींवा में जल संकट के चलते एक वैवाहिक रिश्ता टूट गया है। लड़की वालों ने पानी की समस्या को देखते हुए शादी से इंकार कर दिया है। वह भी तब की स्थिति में जब गाँव में जल जीवन मिशन का काम चल रहा है, बावजूद इसके लड़की वालों का यह भरोसा नहीं हुआ कि यहाँ से पानी की समस्या दूर हो जाएगी।
लोमेस साहू (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उसकी शादी तय हो गई थी। शादी की सारी तैयारियाँ भी हो चुकी थीं। लेकिन लड़की को गाँव में जल संकट की जानकारी मिली तो उसने अपने परिवार को मना कर दिया। शादी न टूटे इसके लिए मैंने घर में बोर खनन करवाया, लेकिन 400 फीट में भी पानी नहीं निकला। आखिरकार लड़की के परिवारवालों ने शादी से इंकार कर दिया।
जल संकट के चलते शादी टूटने की खबर सामने आते ही गाँव की समस्या और बढ़ गई है। पूर्व सरपंच दिलीप कुर्रे का कहना है कि यह क्षेत्र वर्षों से जल संकट से प्रभावित है। कांग्रेस सरकार में आरंग के विधायक रहे डॉ. शिवकुमार डहरिया मंत्री भी थे, बावजूद इसके गाँव की जल संकट की समस्या का निदान नहीं हो सका। नल जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन बिछाने का काम हुआ, लेकिन वह भी अधूरा पड़ा हुआ है।
स्थानीय ग्रामीण इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान कई बार आकर्षित करा चुके हैं, लेकिन गर्मी में पानी का संकट जस का तस बरकरार है। आज रींवा गाँव वालों की मजबूरी यह है कि वे दूसरे गाँवों से पानी ढोकर लाते हैं। क्योंकि नल जल योजना इस गाँव के लिए अभी तक सिर्फ योजना ही है। गाँव में हरियाली भी नहीं पनप पा रही है, क्योंकि यहाँ की भूमि में मिट्टी नहीं, मुरुम है। मुरुम भूमि होने से पेड़-पौधों का विस्तार ही नहीं हो पा रहा है।
‘पानी नहीं तो शादी नहीं’ जैसी कहानी भले ही एक रींवा गाँव की हो, लेकिन न जाने कितने ही गाँवों में आज जल संकट से हाल बेहद बुरा है। पानी की समस्या के लिए शासन-प्रशासन ही जिम्मेदार नहीं, इसके लिए हम सब लोग भी जिम्मेदार हैं, जो जल की महत्ता, प्रकृति की व्यवस्था को समझ नहीं पा रहे। इस समस्या को दूर करने की जिम्मेदारी भी हम सबकी होनी चाहिए। हमें किसी योजना के भरोसे नहीं रहना चाहिए।
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