Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु (Tamil Nadu) विधानसभा से पारित विधेयकों को राज्यपाल की मंजूरी ना मिलने के मामले में अहम फैसला सुनाया था. कोर्ट ने राज्यपाल आर एन रवि (R. N. Ravi) के रोके हुए 10 बिलों को मंजूरी दे दी है. साथ ही राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा भी तय कर दी है. अब इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटीशन दाखिल करने का फैसला लिया है. सरकार का मामना है कि समय-सीमा तय कर देने से संवैधानिक अराजकता बढ़ेगी.
केंद्र सरकार इसी हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर कर सकती है. इस मामले में विधायी विभाग से भी राय ली जा रही है. केंद्र सरकार राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र यानी अघोषित ‘पॉकेट वीटो’ (Pocket Veto) के मुद्दे पर आक्रामक नजर आ रही है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए प्रेषित विधेयकों पर विचार करने का संदर्भ मिलने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए. यह पहली बार है जब राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समयसीमा तय की गई हो. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि राज्यपाल के पास ‘पॉकेट वीटो’ यानी किसी भी फाइल को अनिश्चित काल तक अपने पास लंबित रखने का अधिकार नहीं है.
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कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि राज्य स्तर पर राज्यपाल के पास यह ताकत नहीं रहती कि वो फैसला ले पाए कि किस बिल को संवैधानिक कोर्ट में भेजना है या नहीं. ऐसे में सविधान तो सिर्फ एक ही रास्ता दिखाता है, राज्यपाल उस बिल को राष्ट्रपति के पास भेज दे और फिर राष्ट्रपति आर्टिकल 143 का इस्तेमाल करे.
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सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सरकरिया और Punchhi कमिशन भी स्पष्ट रूप से कह चुका है कि आर्टिकल 143 के तहत राष्ट्रपति कोर्ट से सुझाव ले सकता है जब किसी बिल की संवैधानिक वैधता पर सवाल आता है. बता दें कि, तमिलनाडु के अलावा, केरल, तेलंगाना, पंजाब और पश्चिम बंगाल में भी राज्यपाल और सरकारों के बीच सदन से पारित विधेयकों को मंजूरी ना दिए जाने समेत कई मुद्दों पर तीखी तनातनी दिखी. कोर्ट ने भी कई बार चेतावनी दी कि कोई भी संवैधानिक संस्था चाहे राज्यपाल या कोई और… संविधान की सीमाओं में रहकर काम करें.
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