Tribal Organizations Support Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन कानून बनने के बाद एक तरफ, जहां पश्चिम बंगाल पिछले पांच दिनों से हिंसा की आग में जल रहा है। वहीं कांग्रेस, सपा समेत कई राजनीतिक पार्टियां और कई मुस्लिम धार्मिक संगठन इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) पहुंचे हैं। दूसरी तरफ वक्फ संशोधन मामले की सुनवाई से पहले नए कानून के समर्थन में लगातार आवेदन दाखिल हो रहे हैं। अब आदिवासी संगठनों ने भी इस कानून का समर्थन करते हुए इसे आदिवासियों के हित की रक्षा करने वाला कानून बताया है। जय ओमकार भीलाला समाज संगठन और आदिवासी सेवा मंडल नाम की संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दाखिल कर अपना पक्ष चुने जाने की मांग की है।

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नए वक्फ संशोधन कानून की धारा 3E अनुसूचित जनजाति के लोगों की जमीन को वक्फ की संपत्ति घोषित करने पर रोक लगाती है। आदिवासी संगठन इसे अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए एक जरूरी प्रावधान मान रहे हैं। उनका कहना है कि संविधान निर्माताओं ने आदिवासियों की जमीनों को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहे। इसका परिणाम है तमाम राज्यों के ऐसे कानून जो अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की जमीनों का ट्रांसफर गैर-आदिवासी को करने पर प्रतिबंध लगाते हैं।

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आदिवासी संगठनों ने कहा है कि वक्फ कानून, 1995 में वक्फ बोर्ड को अनियंत्रित शक्ति दे दी गई थी। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां वक्फ बोर्ड ने आदिवासियों की जमीन को वक्फ बताकर उस पर कब्जा कर लिया। संसद से बना नया वक्फ संशोधन कानून आदिवासी समाज के हितों के प्रति केंद्र सरकार की वचनबद्धता को दिखाता है। लंबे समय से ऐसे कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी।

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नए वक्फ कानून के विरोध में 20 से ज्यादा याचिकाए दर्ज

बता दें कि नए वक्फ कानून के विरोध में कांग्रेस, आरजेडी, एसपी, टीएमसी, डीएमके, AIMIM जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं के अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी समेत कई संगठनों और लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। उन्होंने नए कानून को मुस्लिमों से भेदभाव करने वाला बताया है। इस तरह की 20 से ज़्यादा याचिकाएं देश के शीर्ष न्यायालय में दाखिल हुई हैं।

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16 अप्रैल को CJI की अध्यक्षता वाली बेंच याचिकाओं पर करेगी सुनवाई

16 अप्रैल को चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच मामले को सुनेगी। उससे पहले नए कानून के समर्थन में भी याचिकाओं का दाखिल होना जारी है। 2 आदिवासी संगठनों के अलावा 7 राज्य सरकारों ने नए कानून को संविधान सम्मत और न्यायपूर्ण बताया है। इसके अलावा भी कई व्यक्तियों और संगठनों ने नए कानून को सही बताते हुए आवेदन दाखिल किए हैं। इस तरह कानून के पक्ष में भी 14-15 आवेदन दाखिल हो चुके हैं।

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