नर्मदा नदी, जिसे हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है, भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है. इसी विशेष मान्यता के अंतर्गत आयोजित होने वाली उत्तरवाहिनी नर्मदा पंचकोशी परिक्रमा इस वर्ष 29 मार्च से 27 अप्रैल 2025 तक गुजरात के नर्मदा जिले में आयोजित हो रही है.

हर पांच वर्ष में आयोजित होने वाली यह परिक्रमा विशेष रूप से तब की जाती है जब नर्मदा नदी उत्तर दिशा की ओर बहती है — एक अत्यंत दुर्लभ भू-आकृतिक स्थिति, जिसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. लगभग 14 किलोमीटर लंबी यह पंचकोशी यात्रा रामपुरा के कीड़ी मकोड़ी घाट से शुरू होकर शेहरव घाट, रेंगन घाट, तिलकवाड़ा घाट जैसे विभिन्न पवित्र घाटों से होकर गुजरती है.

नर्मदा: नदी नहीं, देवी हैं

पुराणों में वर्णित है कि नर्मदा केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि स्वयं भगवान शिव की मानस पुत्री हैं. अन्य नदियों में स्नान करना पुण्यकारी माना गया है, लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से ही पापों का नाश हो जाता है, ऐसी मान्यता है. यही कारण है कि जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में केवल स्नान किया जाता है, वहीं नर्मदा की परिक्रमा की जाती है, वह भी पूरी श्रद्धा और अनुशासन के साथ.

आध्यात्मिक महत्व

इस परिक्रमा को मोक्ष का मार्ग माना गया है. साधक इस यात्रा के दौरान संयम, तपस्या और भक्ति का पालन करते हैं. “ॐ नमः नर्मदाय” का जाप करते हुए की जाने वाली यह यात्रा मानव की आंतरिक शक्ति और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक बन जाती है.

परिक्रमा का विवरण

  • लंबाई: लगभग 14 किलोमीटर
  • मुख्य घाट: शेहरव घाट, रेंगन घाट, रामपुरा घाट, तिलकवाड़ा घाट
  • प्रारंभ बिंदु: रामपुरा के कीड़ी मकोड़ी घाट से

उद्देश्य

जो भक्त पूर्ण 2,624 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा नहीं कर सकते, उनके लिए यह उत्तरवाहिनी पंचकोशी यात्रा समान आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है.

व्यवस्थाएं

गुजरात सरकार ने ₹3.82 करोड़ की लागत से अस्थायी सुविधाएँ स्थापित की हैं, जिनमें टेंट, शौचालय, ठहरने की व्यवस्था सहित सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध हैं.