उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के संबंध में कड़कड़डूमा कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है. कोर्ट ने चांद बाग और मुख्य वजीराबाद रोड क्षेत्र में हुई हिंसा से जुड़े मामलों में 57 आरोपियों के खिलाफ दंगा, आगजनी, तोड़फोड़ और हमले जैसे गंभीर आरोप तय किए हैं.
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह कोई आकस्मिक भीड़ नहीं थी, बल्कि एक उद्देश्य के साथ एकत्रित हुई हिंसक समूह था, जो विध्वंस करने के इरादे से निकला था. जज पुलस्त्य प्रमाचला ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं. कोर्ट के अनुसार, कई गवाहों ने यह पुष्टि की है कि आरोपी घटनास्थल पर उपस्थित थे.
गवाहों ने अदालत को सूचित किया कि दंगाई भीड़ ने एक ट्रक, दोपहिया वाहन और एक गोदाम में आग लगा दी. इसके अलावा, उन्होंने आम नागरिक ओमप्रकाश को रोका और उसके साथ मारपीट की. अदालत ने कहा कि आरोपियों की गतिविधियाँ हिंसा फैलाने और कानून व्यवस्था को चुनौती देने वाली थीं.
कोर्ट ने आरोपियों को आपराधिक साजिश के तहत IPC की धारा 120B से मुक्त कर दिया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि भीड़ की मंशा हिंसा फैलाने की थी. न्यायालय के अनुसार, आरोपियों पर IPC की धारा 148 (हथियार के साथ दंगा), 435 और 436 (आगजनी से संपत्ति और मकान को नुकसान), 323 (चोट पहुंचाना), 341 (गलत तरीके से रोकना), 149 (गैरकानूनी जमावड़ा) और 188 (सरकारी आदेश का उल्लंघन) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह दंगा केवल गुस्से या उत्तेजना का परिणाम नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक स्पष्ट इरादा और योजना थी.
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