24 अप्रैल को वरुथिनी एकादशी मनाई जा रही है, जो भगवान विष्णु की आराधना का पावन अवसर है. इस दिन व्रत और उपवास का विशेष महत्व होता है. परंपरा के अनुसार, इस दिन चावल नहीं खाए जाते, क्योंकि माना जाता है कि एकादशी पर चावल खाने से व्रत का पुण्य घटता है और पाप बढ़ता है. चावल न खाने का कारण धार्मिक, पौराणिक और आयुर्वेदिक — तीनों ही दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं:

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पौराणिक कारण

पुराणों के अनुसार, एक बार देवी एकादशी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि लोग उनके व्रत का पालन करें. तब भगवान विष्णु ने कहा कि जो व्यक्ति एकादशी को चावल खाएगा, वह पाप का भागी बनेगा. यह भी माना जाता है कि इस दिन अन्न में एक विशेष प्रकार की जीवन ऊर्जा (जीव तत्व) प्रवेश कर जाती है, जिसे ग्रहण करने से मानसिक और आध्यात्मिक हानि हो सकती है.

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धार्मिक कारण (वरुथिनी एकादशी)

एकादशी को उपवास और सात्त्विक जीवनशैली का प्रतीक माना जाता है. चावल को तामसिक और भारी भोजन माना गया है, जो ध्यान और उपवास की भावना के विपरीत है. इसलिए इस दिन चावल का सेवन वर्जित माना गया है, ताकि साधक का मन शुद्ध, स्थिर और एकाग्र रह सके.

आयुर्वेदिक कारण

चावल को जल में पकाया जाता है और इसमें जल तत्व अधिक होता है. एकादशी के दिन व्रत रखने से शरीर में वात और पित्त का संतुलन बना रहता है, जबकि चावल खाने से यह संतुलन बिगड़ सकता है. इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी चावल से परहेज करने की सलाह दी गई है.

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