मुंबई. टाटा ग्रुप की दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च, 2019 तक करीब 220 करोड़ रुपया चुनावी चंदा देने में खर्च किया। कंपनी ने शुक्रवार को घोषित किए अपने वित्तीय आंकड़ों में इस खर्च को लाभ-हानि कॉलम के तहत अन्य खर्च में रखा है।
टीसीएस की तरफ से दी गई यह रकम अब तक किसी कॉरपोरेट कंपनी की तरफ से दिया गया सबसे बड़ा चुनावी चंदा माना जा रहा है। हालांकि टीसीएस ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि जिस चुनावी ट्रस्ट को यह चंदा दिया है, उस ट्रस्ट ने इसे किन राजनीतिक दलों को दिया है।
बता दें कि टीसीएस समेत टाटा ग्रुप की सभी कंपनियां पहले भी चुनावी ट्रस्टों को पैसा देकर राजनीतिक दलों की मदद कर चुकी हैं। टीसीएस ने इससे पहले टाटा ट्रस्ट की तरफ से ही 2013 में स्थापित प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट (पीईटी) को चंदा दिया था। पीईटी ने 1 अप्रैल, 2013 से 31 मार्च, 2016 के बीच कई राजनीतिक पार्टियों को चंदा देकर उनकी मदद की थी।
पीईटी की तरफ से सबसे ज्यादा चंदा कांग्रेस और बीजू जनता दल को दिया गया था। हालांकि इस दौरान पीईटी के चंदे में टीसीएस का महज 1.5 करोड़ रुपये का ही योगदान रहा था। पीईटी ने हाल ही में चुनाव आयोग के सामने अपनी सालाना रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें उसने वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान किसी भी राजनीतिक दल को चंदा नहीं देने की बात कही थी। पीईटी ने इसके चलते खुद को 54,844 करोड़ रुपये का घाटा होने की बात भी रिपोर्ट में लिखी थी।
देश में कई इलेक्टोरल ट्रस्ट को कॉरपोरेट घरानों और राजनीतिक दलों के बीच मध्यस्थता निभाने की मान्यता मिली हुई है। इनमें सबसे प्रूडेंट इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट को सबसे बड़ा माना जाता है, जिसके खाते में पिछले चार साल में देश के सभी इलेक्टोरल ट्रस्टों को मिली रकम का करीब 90 फीसदी हिस्सा आया है।
इस ट्रस्ट में चंदे का सबसे ज्यादा योगदान भारती ग्रुप की कंपनियों और डीएलएफ समूह से आता है। वित्त वर्ष 2017-18 में प्रूडेंट ने अपने पास जमा करीब 169 करोड़ रुपये में से 144 करोड़ रुपये भाजपा को दिए थे। भाजपा को मिले इस पैसे में भारती ग्रुप ने 33 करोड़ रुपये और डीएलएफ ने 52 करोड़ रुपये का योगदान दिया था।