दिल्ली पुलिस ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को निजामुद्दीन से गिरफ्तार किया है. उनके खिलाफ कोर्ट ने गैर-जमानती वारंट जारी किया था, जिसके चलते यह कार्रवाई की गई. आज दोपहर साकेत कोर्ट में उनकी पेशी होगी.

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यह कार्रवाई दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा 2001 में दर्ज किए गए आपराधिक मानहानि मामले में दोषसिद्धि के बाद की गई है. साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने बताया कि मेधा पाटकर अदालत में उपस्थित नहीं हुईं और उन्होंने जानबूझकर सजा से संबंधित आदेश का पालन नहीं किया.

न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि पाटकर की मंशा अदालत के आदेश का उल्लंघन करना और सुनवाई से बचना था. चूंकि सजा पर कोई स्थगन आदेश नहीं है, इसलिए अदालत ने पाटकर को पेश करने के लिए दबाव डालने की आवश्यकता जताई है.

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कोर्ट ने आदेश में क्या कहा था?

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट दिल्ली पुलिस आयुक्त के कार्यालय के माध्यम से जारी किया जाए. इस मामले की अगली सुनवाई तीन मई को होगी. इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पाटकर ने सजा के आदेश का पालन नहीं किया, तो अदालत को पहले दी गई ‘उदार सजा’ पर पुनर्विचार करना पड़ेगा, जिससे सजा में बदलाव संभव है.

मेधा पाटकर ने पिछले वर्ष मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ अपील की थी. इस अपील में उन्हें जमानत मिल गई, और उनकी पांच महीने की कैद तथा 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा को स्थगित कर दिया गया. यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दर्ज किया गया था.

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साल 2001 में विनय सक्सेना ने दर्ज कराया था मामला

विनय कुमार सक्सेना ने 2001 में एक मामला दर्ज कराया, जब वे अहमदाबाद स्थित एनजीओ ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे. उन्होंने आरोप लगाया कि मेधा पाटकर ने 25 नवंबर 2000 को जारी एक प्रेस नोट में उन्हें कायर और देश विरोधी कहा, साथ ही उन पर हवाला लेनदेन में संलिप्त होने का आरोप लगाया.

कोर्ट ने पाटकर को दोषी ठहराते हुए कहा कि उनके बयान जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थे, जिनका उद्देश्य सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना था. पाटकर की ओर से अधिवक्ता अभिमन्यु श्रेष्ठ ने अपना पक्ष रखा, जबकि सक्सेना का प्रतिनिधित्व अधिवक्तागण गजिंदर कुमार, किरण जय, चंद्रशेखर और सौम्या आर्या ने किया.