दिल्ली हाईकोर्ट ने दहेज हत्या से संबंधित एक मामले में आरोपी पति को जमानत प्रदान की है. कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि समाज में दहेज के कारण होने वाली मौतें अत्यंत चिंताजनक हैं, लेकिन बिना ठोस साक्ष्य के आरोपियों को जेल में रखना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा. यह मामला नवंबर 2023 का है, जब एक नवविवाहिता की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हुई थी.
शादी के एक साल के भीतर ही एक महिला ने बाथरूम में पंखे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस घटना के बाद स्वाभाविक रूप से मामला धारा 304बी (दहेज हत्या) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दर्ज किया गया. पति को जेल भेजा गया, लेकिन जब मामला उच्च न्यायालय में पहुंचा, तो स्थिति कुछ भिन्न नजर आई.
आरोपों से नहीं, साक्ष्यों से चलता है न्याय
जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि दहेज हत्या एक गंभीर सामाजिक अपराध है, जो परिवार के भीतर की गरिमा और समानता को नष्ट करता है. हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि हर दुखद मृत्यु को सीधे दहेज से जोड़ा जाए, जब तक कि इसके समर्थन में ठोस और स्पष्ट सबूत न हों. अदालत ने यह भी देखा कि मृतका के परिवार ने कार की मांग का आरोप लगाया, लेकिन यह आरोप उन्होंने महिला की मृत्यु के बाद ही लगाया.
महिला के जीवन में इस संबंध में न तो कोई शिकायत, न FIR, और न ही कोई सार्वजनिक बयान दर्ज किया गया है. इसके अलावा, परिवार द्वारा दिए गए बयानों में महत्वपूर्ण जानकारियों की कमी देखी गई है, जैसे तारीख, समय, और दहेज की मांग की बार-बारता.
न्याय का मतलब संतुलन, न कि भीड़ की मांग
मृतका के परिवार ने उसके पति पर विवाहेतर संबंध का आरोप लगाया, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल संदेह के आधार पर किसी के चरित्र पर उंगली उठाना और उसे आत्महत्या के लिए दोषी ठहराना उचित नहीं है. अदालत ने यह भी कहा कि यदि ऐसा संबंध था, तो भी यह धारा 498ए (क्रूरता) के अंतर्गत नहीं आता, जब तक कि सीधे हिंसा या मानसिक उत्पीड़न का प्रमाण न हो.
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि ट्रायल के जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है. चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, आरोपी की भाभी पहले से जमानत पर है, और मृतका के ससुर तथा देवर को कोर्ट ने पहले ही क्लीन चिट दे दी है. ऐसे हालात में आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखना न्याय व्यवस्था की भावना के खिलाफ होगा. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जमानत न तो दंड है और न ही निवारण, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी ट्रायल के दौरान उपस्थित रहे. न्याय केवल आरोपों पर नहीं, बल्कि साक्ष्यों पर आधारित होता है.
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