नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले में टेक्निकल कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने स्पष्ट किया कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा है, इसलिए रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जा सकता.

सरकार को पेगासस इस्तेमाल करने से कोई नहीं रोक सकता

कोर्ट ने कहा कि नागरिकों की निजता का अधिकार सुरक्षित रहेगा, लेकिन स्पाइवेयर जैसे उपकरण का इस्तेमाल अगर आतंकवादियों के खिलाफ हो रहा है, तो वह गलत नहीं माना जा सकता. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने पूछा कि क्या सरकार के पास स्पाइवेयर था और उसने इसका इस्तेमाल किया? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर उनके पास स्पाइवेयर है, तो उन्हें आज भी इसका इस्तेमाल करने से कोई नहीं रोक सकता. मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी.

बता दें कि 2021 में पेगासस सॉफ्टवेयर से करीब 300 भारतीयों की कथित जासूसी के आरोप लगे थे. इसमें पत्रकारों, नेताओं, अफसरों और कार्यकर्ताओं के नाम सामने आए थे. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बनाई जांच समिति को फोन में पेगासस के सीधे सबूत नहीं मिले, सिर्फ 5 मोबाइल में सामान्य मालवेयर मिला. इस मामले में वकील कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट ‘सड़कों पर बहस’ का विषय नहीं बन सकती.

पेगासस निगरानी सूची में ये नाम रहे चर्चा में:

  • राजनेता: कांग्रेस नेता राहुल गांधी, टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी, विहिप के पूर्व नेता प्रवीण तोगड़िया, और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के मोबाइल संभावित रूप से निगरानी में थे.
  • सरकारी पदाधिकारी: पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल और उनके करीबियों समेत रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के नंबर भी सूची में शामिल थे.
  • न्यायपालिका: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला और उसके 11 परिजनों के फोन भी निगरानी के दायरे में थे.
  • मीडिया से जुड़े नाम: 2017 से 2019 के बीच, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, द वायर, द पायनियर, इंडिया टुडे, और अन्य बड़े मीडिया संस्थानों से जुड़े 38 पत्रकारों को संभावित रूप से निशाना बनाया गया.
  • प्रशासनिक अधिकारी: पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के पूर्व ओएसडी संजय काचरू, और वसुंधरा राजे के निजी सचिव प्रदीप अवस्थी के नाम भी सूची में शामिल थे.

Note:  इनमें से कुछ मामलों में ही पेगासस सॉफ्टवेयर के उपयोग की पुष्टि हो सकी है.

जानिए क्या है पेगासस जासूसी और मामले में कोर्ट के फैसले:

अक्टूबर 2019: व्हाट्सऐप ने सार्वजनिक किया कि इजराइल की कंपनी NSO ग्रुप द्वारा विकसित पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग कर कई देशों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों के मोबाइल फोन हैक किए गए. इसके बाद व्हाट्सऐप ने अमेरिका में कंपनी पर मुकदमा भी दर्ज किया.

जुलाई 2021: दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों की एक संयुक्त जांच रिपोर्ट में लगभग 50,000 फोन नंबरों की एक लिस्ट सामने आई, जिनकी संभावित निगरानी पेगासस सॉफ्टवेयर से किए जाने का दावा किया गया. इनमें 300 से ज्यादा भारतीय नंबर भी शामिल थे.

अगस्त 2021: भारत में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं. अदालत ने इसे गंभीर मामला माना और केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा.

अक्टूबर 2021: कोर्ट ने रिटायर्ड जज आर. वी. रवींद्रन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसे पेगासस के उपयोग की गहराई से जांच करने की जिम्मेदारी दी गई.

मई 2022: समिति को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपने के लिए और समय प्रदान किया गया.

अगस्त 2022: सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि जांच के दौरान 29 फोन की पड़ताल की गई, जिनमें से 5 में मैलवेयर के संकेत मिले, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि वह पेगासस ही था या नहीं.अप्रैल 2025:
29 अप्रैल को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस से जुड़ी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा मामला है.