दिल्ली सरकार ने स्कूलों द्वारा मनमानी फीस बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए एक नए बिल के मसौदे को मंजूरी दे दी है. यह निर्णय मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता(Rekha Gupta) की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया. सरकार का उद्देश्य अभिभावकों और छात्रों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ सख्त कानून लाना है. इस संदर्भ में “ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस 2025” नामक बिल का मसौदा स्वीकृत किया गया है.
दिल्ली सरकार निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस बढ़ाने पर सख्त कार्रवाई करने जा रही है. शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने मंगलवार को जानकारी दी कि यदि स्कूल समितियों द्वारा निर्धारित फीस का पालन नहीं करते हैं, तो उन पर एक लाख से लेकर दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि यदि स्कूल नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो उनके लाइसेंस को रद्द करने के साथ-साथ टेकओवर की कार्रवाई भी की जा सकती है. फीस न चुकाने के कारण किसी छात्र का नाम काटना, परिणाम रोकना, कक्षा या गतिविधियों से वंचित करना, और सार्वजनिक अपमान करने पर स्कूल पर प्रति छात्र 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. यदि यह उल्लंघन 20 दिन के भीतर दोहराया जाता है, तो जुर्माने की राशि दोगुनी कर दी जाएगी. यदि स्कूल इस जुर्माने का भुगतान नहीं करता है, तो उसकी चल और अचल संपत्ति को जब्त कर बेचा जा सकता है.
लगातार मिल रही थीं शिकायतें : मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बताया कि स्कूलों में फीस बढ़ोतरी को लेकर लगातार शिकायतें आ रही थीं. कई निजी स्कूल बिना किसी पूर्व अनुमति के अचानक फीस बढ़ा रहे हैं, जिससे छात्रों को समय पर फीस न भरने पर प्रताड़ित किया जा रहा है. इसमें परीक्षा में बैठने से रोकना, कक्षाओं से बाहर करना और सार्वजनिक रूप से अपमानित करना शामिल है. इस स्थिति को देखते हुए हमने जिलाधिकारी को स्कूलों में जांच के लिए भेजना शुरू किया है. हमारी सरकार उन कदमों को उठाने जा रही है जो पूर्व की सरकारों ने नहीं उठाए, और हम ऐसा कानून लाने की योजना बना रहे हैं जो स्कूलों में फीस बढ़ोतरी की मनमानी पर रोक लगाएगा.
अभिभावक संघ ने स्कूल फीस वृद्धि के संबंध में अध्यादेश की घोषणा का स्वागत किया है. निजी स्कूलों के अभिभावक संघ के सदस्य नितिन गुप्ता ने बताया कि हजारों अभिभावक इस निर्णय की लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे थे. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वास्तविकता यह है कि अधिकांश निजी स्कूल शिक्षा निदेशालय के दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं. अब सरकार को केवल जुर्माने और चेतावनियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
अभिभावकों की भूमिका: बैठक के बाद दिल्ली सचिवालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने बताया कि फीस निर्धारण में अभिभावकों की भागीदारी महत्वपूर्ण होगी. शिक्षा मंत्री अशीष सूद ने जानकारी दी कि नए कानून के तहत फीस तय करने के लिए तीन स्तरों पर कमेटी का गठन किया जाएगा.
फीस वृद्धि से पहले अनुमति लेनी होगी
एक नई व्यवस्था के तहत, फीस बढ़ोतरी का निर्धारण तीन स्तरों पर किया जाएगा. यदि कोई स्कूल मनमानी करता है, तो उस पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा. यह विधेयक अगले शैक्षणिक सत्र में प्रस्तुत किया जाएगा.
स्कूल स्तर पर पहली समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें स्कूल प्रबंधन का प्रतिनिधि अध्यक्ष होगा. इस समिति में प्रधानाचार्य, तीन शिक्षक और पांच अभिभावक शामिल होंगे. यह समिति हर वर्ष 31 जुलाई को बनाई जाएगी और उसे 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. यदि समिति फीस बढ़ोतरी पर सहमत नहीं होती है, तो मामला जिला शुल्क अपील समिति के पास भेजा जाएगा.
जिला स्तर पर दूसरी समिति: इस समिति की अध्यक्षता जिला शिक्षा उपनिदेशक करेंगे, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट, जोनल उपनिदेशक, क्षेत्रीय लेखाधिकारी, शिक्षक और अभिभावक प्रतिनिधि शामिल होंगे. समिति को 45 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. यदि यह समिति फीस निर्धारित करने में असफल रहती है, तो शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित की जाएगी.
राज्य स्तर पर तीसरी समिति: यह राज्यस्तरीय समिति अंतिम निर्णय लेगी. इसमें शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञ, चार्टर्ड एकाउंटेंट, लेखा नियंत्रक, निजी स्कूलों के प्रतिनिधि और अभिभावक प्रतिनिधि शामिल होंगे.
3 वर्ष में एक बार रेटिंग से तय होगी बढ़ोतरी
बिल में यह स्पष्ट किया गया है कि स्कूल फीस निर्धारित करने के लिए किन कारकों का ध्यान रखा जाएगा. इनमें स्कूल की शैक्षणिक गुणवत्ता, वित्तीय स्थिति, उपलब्ध सुविधाएं और परिणाम शामिल हैं. शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने बताया कि एक बार फीस तय होने के बाद, यह अगले तीन अकादमिक वर्षों तक लागू रहेगी, जिससे अभिभावकों को राहत मिलेगी और अनिश्चितता में कमी आएगी.
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