परवेज आलम/वेस्ट चंपारण: दोन की दुर्गम पहाड़ी और घने जंगलों के साथ साथ पहाड़ी नदियों से घिरे इलाके में रहने वाला एक शख्स देवेंचंद महतो वैसे लोगों के लिए रोल मॉडल हैं, जो संघर्ष और मेहनत करने से घबराते हैं. प्रकृति के कहर में अपना एक हाथ और एक पैर गवा देने के बावजूद हिम्मत और हौसला नहीं कम हुआ है. लिहाजा हर रोज दुर्गम इलाकों में 40 से 50 किलोमीटर तक करीब 1500 मीटर ऊंची पहाड़ी के बीच उबड़-खाबड़ रास्तों पर 22 पहाड़ी नदियों कों पार कर जीविकोपार्जन की अनूठी मिसाल कायम कर रहें इस दिव्यांग शख्स को सरकारी स्तर पर राहत और मदद का इंतजार है.
किराना दुकान चलाता है युवक
दरअसल, देवेंचंद नामक 32 वर्षीय इस शख्स ने हादसे में अपना दाहिना हाथ और पैर गंवा दिया है, लेकिन फिर भी हार नहीं मानी. फिलहाल जीविकोपार्जन के लिए देवेंचंद एक छोटी सी किराना दुकान चलाता है और इस दुकान का सामान खरीदने के लिए वह एक हाथ और एक पैर से सरपट बाइक चलाकर हर रोज 22 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से होकर गुजरता है. दोनों ओर से आता जाता पहाड़ी नदी और जंगल के रास्तों में यह शख्स मेहनत मजदूरी से भागने वालों के लिए आज मिसाल बन गया है.
40 किलोमीटर की आवाजाही
इसका बाइक ड्राइविंग देख आप भी इसके हौसले की तारीफ किए बिना नहीं रह पाएंगे, क्योंकि दोन के कई गांवों से दूर यह शख्स हर दिन तकरीबन 40 किलोमीटर की आवाजाही कर हरनाटांड बाजार से खरीदारी के बाद दोन के कमरछीनवा गांव में अपनी छोटी सी दूकान सजाता है, जहां लोगों के दैनिक जरूरत की चीजें बेचकर अपने बीवी बच्चों के साथ परिवार का भरण पोषण पिछले 12 वर्षों से ऐसे ही करते चला आ रहा है.
22 नदियां करनी पड़ती है पार
बताया जा रहा है कि देवेंचंद महतो गुजरात में मजदूरी करने गया था, लेकिन अचानक वर्ष 2012 में रोलिंग मशीन में गैस सिलेंडर ब्लास्ट हुआ और इसके दायां हाथ और पैर धमाके में उड़ गए. जिंदगी और मौत से जूझता हुआ यह युवक किसी तरह तो बच गया, लेकिन पेट पालने और परिवार चलाने की मजबूरी में इसने गांव आकर किराना दुकान खोल लीं. आज यह शख्स एक हाथ और पैर से बाइक चलाकर कमर्छिनवा गांव से हरनाटांड़ 22 कि.मी. दूर सामान लाने जाता है और फिर उधर से वापस अपने गांव लौटता है. इस बीच उसे पहाड़ी रास्तों समेत 22 नदियां पार करनी पड़ती है.
‘लाचारी और मजबूरी है’
देवेंचंद का कहना है कि कम लागत में छोटी सी किराना दुकान से परिवार चलाना काफी मुश्किल होता है. इसलिए लोन/ऋण के लिए कई बार बैंकों में गया, लेकिन बैंक लोन देने से मना कर देता है. मेरे पास ना तो जमीन है और ना ही कोई अन्य साधन जिसे मॉर्गेज कर लोन उठा सकूं. इसलिए संघर्ष और मुश्किलों के बीच जीवन यापन करने कि लाचारी और मजबूरी है. वहीं, स्थानीय ग्रामीण भी देवेंचंद की परेशानी देख सरकार और प्रशासन से उसे उचित सहयोग और मदद दिलाने की बात कह रहें हैं, ताकि हादसे का शिकार इस दिव्यांग कों सिस्टम का सहारा मिल जाए.
‘परिवार खुशहाल हो सकता है’
बता दें कि दोन पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर प्रखंड अंतर्गत गोबरहिया थाना क्षेत्र का दुर्गम अति पिछड़ा इलाका है, जो बनकटवा और नौरंगिया इन दो पंचायतों में 30 गांव मिलाकर नेपाल के तराई में बसा हुआ क्षेत्र है, जहां आज भी पक्की सड़क, बिजली, पानी, अस्पताल समेत मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. बावजूद यहां के लोगों का मधुर व्यवहार और सच्ची लग्न के साथ कड़ी मेहनत ने इसकी अलग पहचान बना रखी है, ऐसे में थारू आदिवासी बहुल्य इलाके में सिड्यूल ट्राइब समुदाय से आने वाले देवेंचंद एक मिसाल हैं, जब उन्होंने साबित कर दिखाया है की पंखोँ से नहीं हौसलों से उड़ान होती है. इतने बड़े हादसे के बाद भी हिम्मत और हौसलों के बदौलत जिंदगी की डोर पकड़े कड़ी मेहनत कर रहे देवेंचंद को अगर सरकारी स्तर पर थोड़ी मदद मिल जाए, तो परिवार खुशहाल हो सकता है.
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