गोविंद पटेल, कुशीनगर. सरकार जहां एक ओर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को कान्वेंट स्कूलों की तर्ज पर विकसित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे ठीक उलट दिखाई दे रही है. विद्यालय में कुल एक ही कमरा है, जिसमें कक्षा 1 से 5 तक के सभी बच्चों की पढ़ाई होती है. आलम ये है कि हेडमास्टर महीनों गायब रहते हैं और सरकार से सैलरी लेकर मौज की जिंदगी काट रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है क्या योगी सरकार के दावे कागजों तक ही सीमित हैं? अगर इसका जवाब हां है तो योगी सरकार को अपने कामकाज और दावों को लेकर मंथन किया जाना चाहिए. अगर मंथन नहीं कर सकते तो खोखले औऱ झूठे दावों को लेकर जनता से माफी मांगनी चाहिए!
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ताजा मामला कुशीनगर जनपद के सुकरौली विकासखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय महुआइया पड़री का है, जहां शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. विद्यालय में कुल एक ही कमरा है, जिसमें कक्षा 1 से 5 तक के सभी बच्चों की पढ़ाई होती है. जब विद्यालय का जायजा लिया गया तो एक ही कमरे में करीब 20 बच्चे बैठे पाए गए. वहीं सहायक अध्यापक अकेले ही सभी कक्षाओं को पढ़ा रहे थे. उन्होंने बताया कि विद्यालय का भवन जर्जर हो चुका है और कई बार शिकायत के बावजूद अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है.
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सबसे चिंताजनक स्थिति तब सामने आई जब यह पता चला कि विद्यालय के हेडमास्टर नन्हे शाही, जो इसी गांव के निवासी हैं, महीनों से विद्यालय नहीं आ रहे. सूत्रों के मुताबिक, नन्हे शाही की शिक्षा विभाग में ऊंची पहुंच है और यही वजह है कि उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. आरोप यह भी है कि यदि विद्यालय भवन बन गया तो उन्हें विद्यालय आकर पढ़ाना पड़ेगा, इसी कारण वे भवन निर्माण में भी बाधा डाल रहे हैं. जब उनसे संपर्क करने की कोशिश की जाती है, तो वे अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, जो किसी भी शिक्षक को शोभा नहीं देता.
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बेसिक शिक्षा अधिकारी रामजीयवसन मौर्य ने कहा कि “यदि खबर प्रकाशित होती है, तो कार्रवाई करवाई जाएगी.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कई शिक्षक उन्हीं गांवों में तैनात हैं, जहां उनका विद्यालय है, जिससे पठन-पाठन में लापरवाही की शिकायतें मिल रही हैं.
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एसडीआई जया राय ने कहा कि “विद्यालय भवन जर्जर है, इसलिए सभी कक्षाएं एक ही कमरे में संचालित हो रही हैं. कम बच्चों वाले विद्यालयों को जूनियर स्कूल से अटैच करने की योजना पर भी काम चल रहा है.” अब बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर शिक्षक ही विद्यालय न जाकर घर में रहेंगे और सरकारी योजनाओं को पलीता लगाते रहेंगे, तो फिर सरकार का ‘कायाकल्प’ अभियान कागज़ों तक ही सीमित रह जाएगा.
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