अमित पांडेय, डोंगरगढ़. शनिवार दोपहर डोंगरगढ़ के प्रसिद्ध सुदर्शन पहाड़ पर उस वक्त हड़कंप मच गया जब स्थानीय लोगों ने तेंदुए को पहाड़ की ढलानों पर खुलेआम घूमते देखा। शुरुआत में कुछ लोगों को यह अफवाह लगी, लेकिन जब फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, तो स्थिति स्पष्ट हो गई कि तेंदुआ शहर के एकदम करीब पहुंच चुका है।

इस क्षेत्र के आसपास सरकारी कॉलोनियां, अफसरों के आवास और आम नागरिकों की बस्तियां बस चुकी हैं। घटना के बाद वन विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए इलाके में पिंजरे लगाए, रेस्क्यू टीमें तैनात की और क्षेत्र को घेर लिया। लेकिन सवाल यहीं से खड़े होते हैं क्या तेंदुआ गलती से शहर में घुस आया, या शहर ही धीरे-धीरे उसकी ज़मीन पर कब्जा कर गया?

अब समझिए बड़ा एंगल: ‘शहर’ जंगल में घुस रहा है

यह घटना केवल एक वन्यजीव की आमद नहीं, बल्कि शहर और जंगल के बीच बढ़ती टकराहट की बानगी है। सुदर्शन पहाड़, जहां तेंदुआ देखा गया, कभी पूरी तरह से वन क्षेत्र था। घना जंगल, जैव विविधता और शांत वातावरण इसे वन्यजीवों के लिए आदर्श बनाता था।लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस इलाके ने ‘तेज विकास’ का स्वाद चख लिया। अब यहां अब कॉलोनियां, सड़कें, स्ट्रीट लाइट्स और सरकारी इमारतें हैं। जिस जंगल को वन्यजीवों का घर कहा जाता था, वहां अब इंसानी आबादी घुस आई है। इसलिए जब तेंदुआ आया, तो वह भटका नहीं था—वह अपने ही घर के बचे-खुचे हिस्से में मौजूद था।

वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

विशेषज्ञों के अनुसार, यह तेंदुआ इस क्षेत्र में नया नहीं है। वर्षों से इसकी उपस्थिति दर्ज की जा रही थी, लेकिन पहले इंसानी गतिविधियां सीमित थीं, जिससे कोई टकराव नहीं होता था। आज जब जंगल की सीमा घट गई है और इंसानी गतिविधियाँ बढ़ गई हैं, तो वन्यजीवों का सामना शहर से होना तय है। और जब वो सामने आते हैं, तो हम उन्हें ‘खतरा’ समझने लगते हैं, जबकि असल में खतरे की जड़ हमारी विकास नीति है, जो प्रकृति की जगह कंक्रीट को तरजीह देती है।

फिलहाल सरकारी आवासो के पास देखे जाने के बाद से ही वन विभाग ने तेंदुए को पकड़ने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू कर दिया है, बीती रात से ही वन विभाग के अधिकारियों ने पिंजरा लगाकर तेंदुए की खोजबीन शुरू कर दी है। लेकिन अब भी बड़ा सवाल यही है कि आखिर तेंदुए के प्राकृतिक रहवास से उसे निकाल कर वन विभाग ले कहां जाएगा? इस पूरे मामले पर वन विभाग की ओर से अभी तक कोई ठोस जानकारी साझा नहीं की गई है। अधिकारी मामले को गंभीर बताते हुए मीडिया से अपनी नज़रे छुपा रहे हैं। इस पूरे मामले में असली ज़रूरत है विकास की दिशा और उसकी नैतिकता पर पुनर्विचार करने की। क्या शहरों का विस्तार अनियंत्रित हो चुका है? क्या हम जंगलों को निगलते-निगलते उस बिंदु तक पहुंच चुके हैं, जहां इंसान और जानवर की टकराहट अब टालने वाली नहीं रही? सुदर्शन पहाड़ पर तेंदुए की मौजूदगी एक चेतावनी है। यह सिर्फ एक जानवर की कहानी नहीं, बल्कि उस संतुलन की टूटती कड़ी है, जिसमें शहर और जंगल सह-अस्तित्व में रहते थे।