चीफ जस्टिस संजीव खन्ना(Sanjeev Khanna) ने जस्टिस यशवंत वर्मा(Yashwant Verma) के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से नकद राशि मिलने के मामले में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है. इस पत्र के साथ दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व और इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्तमान जज जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच कर रही तीन-सदस्यीय समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया भी संलग्न की गई है. यह पत्र ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत भेजा गया है.
सूत्रों के अनुसार, समिति की रिपोर्ट के आधार पर CJI ने न्यायमूर्ति वर्मा को इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी थी. हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा ने इस सुझाव को ठुकराते हुए अपने पद पर बने रहने का निर्णय लिया, जिससे स्थिति और जटिल हो गई. नियुक्त समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा पर नकदी बरामदगी मामले में आरोप लगाए हैं.
जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश?
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि मुख्य न्यायाधीश ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश की है. यदि न्यायाधीश द्वारा इस्तीफा देने की सलाह का पालन नहीं किया जाता है, तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की कार्रवाई के लिए पत्र लिखेंगे.
अब कार्यपालिका और संसद न्यायमूर्ति वर्मा के महाभियोग पर निर्णय लेंगी. यदि केंद्र सरकार चाहती है, तो वह न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ कर सकती है, जो एक संवैधानिक प्रक्रिया है और इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है.
समिति की जांच में कैश मिलने की पुष्टि
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक आधिकारिक बयान में बताया कि उन्होंने आंतरिक प्रक्रिया के तहत भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है, जिसमें तीन सदस्यीय समिति की 3 मई की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा द्वारा 6 मई को भेजे गए पत्र/प्रतिक्रिया की प्रति संलग्न की गई है.
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सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ने अपनी जांच रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा पर नकदी खोज के आरोपों की पुष्टि की है. इस तीन सदस्यीय पैनल में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधावालिया, और कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे. यह रिपोर्ट 3 मई को अंतिम रूप दी गई थी.
जांच समिति ने 50 से अधिक लोगों से दर्ज किए बयान
जांच समिति ने सबूतों का गहन विश्लेषण किया और 14 मार्च को रात करीब 11.35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास में आग लगने की घटना के पहले प्रतिक्रियादाताओं में से रहे दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख सहित 50 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए. इस बीच, न्यायमूर्ति वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल को दिए गए अपने उत्तर में आरोपों का लगातार खंडन किया.
क्या है इन-हाउस प्रोसीजर
यह ध्यान देने योग्य है कि इन-हाउस प्रोसीजर एक आंतरिक प्रक्रिया है, जिसे उच्च न्यायपालिका में अनुशासन बनाए रखने के लिए विकसित किया गया है. इसकी स्थापना सुप्रीम कोर्ट ने C. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य (1995) और ADJ ‘X’ बनाम रजिस्ट्रार जनरल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (2015) जैसे महत्वपूर्ण मामलों में की थी.
1997 में एक समिति ने इन-हाउस प्रक्रियाओं का खाका तैयार किया, जिसे 1999 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने संशोधित रूप में स्वीकार किया. इस प्रक्रिया के अंतर्गत, सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की एक समिति आरोपों की जांच करती है और उसके आधार पर रिपोर्ट प्रस्तुत करती है.
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