बिलासपुर. छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. आपसी विवाद में तलाक के बाद भी पति-पत्नी एक ही घर में रहेंगे. कोर्ट में सुनवाई से पहले दोनों ने आपस में समझौता किया. कोर्ट ने पति को घर के ग्राउंड फ्लोर और पत्नी को फर्स्ट फ्लोर में रहने की सहमति दी है. यह मामला दुर्ग जिले का है.

फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट की पहल के बाद पति-पत्नी ने सुलह का रास्ता अपनाया है. उनके बीच 6 बिंदुओं पर सहमति बनी है, जिसके मुताबिक उन्हें घर के खर्च में बराबर का हिस्सा देना होगा। गवाहों की मौजूदगी में ये एग्रीमेंट कराया गया. जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने फैसले में कहा है कि ऐसा तलाक के आदेश को रद्द करने और विवाह में एकता और संबंधों में स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए किया गया है.

जानिए पूरा मामला

दरअसल, दुर्ग निवासी महिला और उसके पति के बीच आपसी विवाद शुरू हो गया, जिसके चलते मामला फैमिली कोर्ट पहुंच गया. फैमिली कोर्ट ने 9 मई 2024 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पेश परिवाद को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री मंजूर की थी. इस फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की थी. यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा था. हाईकोर्ट अपील की सुनवाई के दौरान ही पति-पत्नी ने आपसी सहमति से विवाद सुलझा लिया. 28 अप्रैल 2025 को गवाहों की उपस्थिति में एग्रीमेंट का दस्तावेज तैयार किया गया. इसे 1 मई 2025 को हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया गया.

हाईकोर्ट ने 28 अप्रैल 2025 के समझौते को दर्ज करते हुए अपील स्वीकार की, जिसके बाद फैमिली कोर्ट के 9 मई 2024 के आदेश और डिक्री को रद्द कर दी. साथ ही स्पष्ट किया कि पति-पत्नी को समझौते की शर्तों को मानना होगा. एग्रीमेंट तोड़ने पर दोनों में से कोई भी दोबारा कोर्ट आ सकते हैं.

इन बिंदुओं पर पति-पत्नी में हुआ समझौता

समझौते के मुताबिक, भिलाई की जिस कॉलोनी में उनका मकान है, वहां दोनों साथ रहेंगे. पति ग्राउंड फ्लोर और पत्नी फर्स्ट फ्लोर पर रहेगी. जल कर, बिजली बिल, संपत्ति कर, रखरखाव शुल्क जैसे सभी सामान्य खर्च दोनों बराबर बांटेंगे. दोनों के व्यक्तिगत खर्च, बैंक खाते, पेंशन, वेतन और व्यक्तिगत आय से संबंधित जिम्मेदारी अपनी-अपनी होगी. कोई भी पक्ष दूसरे की वित्तीय संपत्ति में बिना लिखित सहमति के हस्तक्षेप नहीं करेगा. पत्नी को केंद्रीय हॉस्पिटल का चिकित्सा लाभ दिलाने के लिए पति जरूरी औपचारिकताएं पूरी करेगा. पत्नी आवेदन शुल्क और अन्य खर्च खुद वहन करेगी. दोनों को यात्रा, अलग स्थानों पर रहने और स्वतंत्र सामाजिक संबंध रखने की स्वतंत्रता होगी. कोई भी पक्ष दूसरे के रिश्तेदारों या सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं होगा. आपसी सहमति से संयुक्त यात्राएं कर सकेंगे.