New CJI BR Gavai: न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (Bhushan Ramkrishna Gavai) देश के 52वें चीफ जस्टिस (chief Justice) बन गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधिश को शपथ दिलाई। देश के नये सीजेआई देश के पहले बौद्ध CJI तथा अनुसूचित जाति के दूसरे न्यायाधीश हैं। बीआर गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। 16 अप्रैल को पूर्व सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी।

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दरअसल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना विगत मंगलवार (13 मई) को सेवानिवृत्त हो गए। जस्टिस खन्ना ने कहा, वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई आधिकारिक पद नहीं संभालेंगे, हालांकि वह कानून के क्षेत्र में काम जारी रखेंगे। 

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न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल 14 मई 2025 से शुरू होगा और 23 नवंबर 2025 तक रहेगा। उनके नेतृत्व में न केवल न्यायपालिका को महत्वपूर्ण निर्णयों की उम्मीद है। बल्कि वे न्यायिक विरासत को भी नई दिशा देंगे। उन्होंने पहले कई संवेदनशील और संवैधानिक मामलों पर महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।

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न्यायमूर्ति गवई संविधान पीठ के सदस्य रहे जिन्होंने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा 2019 में धारा 370 को निष्प्रभावी करने के फैसले को संवैधानिक ठहराया, चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराना और 2016 के नोटबंदी को सही फैसले को सही ठहराने, ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुत गांधी की सजा पर रोक और 2002 गोधरा दंगों से जुड़े केस में तीस्ता सीतलवाड़ को नियमित जमानत देने जैसे विवादास्पद मामलों में निर्णय दिया है।

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जस्टिस बीआर गवई का ऐसा रहा करियर
16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में सेवा दी। 17 जनवरी, 2000 को उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए। 24 मई, 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय में कई ऐसी संविधान पीठों में शामिल रहे, जिनके फैसलों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। दिसंबर 2023 में, उन्होंने पांच जजों की संविधान पीठ में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा। 

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ऐतिहासिक फैसलों में निभाई अहम भूमिका

अनुच्छेद 370: जस्टिस गवई उस पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय को वैध ठहराया. यह निर्णय ऐतिहासिक रूप से राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने से जुड़ा था.

चुनावी बॉन्ड: वे उस संवैधानिक पीठ में भी शामिल थे जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए लाए गए चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया.

नोटबंदी: वर्ष 2016 की नोटबंदी को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा, तब पांच सदस्यीय पीठ ने 4:1 के बहुमत से केंद्र सरकार के फैसले को वैध ठहराया. इस फैसले में जस्टिस गवई भी बहुमत के पक्ष में थे.

आरक्षण में उप-वर्गीकरण: जस्टिस गवई सात सदस्यीय संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने 6:1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों के भीतर अति-पिछड़े वर्गों का उप-वर्गीकरण कर सकती हैं. यह फैसला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना गया.

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पिता रहे हैं बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। जस्टिस गवई के पिता दिवंगत आरएस गवई भी एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे। जस्टिस गवई ने अपने वकालत करियर की शुरुआत साल 2003 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में बतौर एडिश्नल जज की थी। इसके बाद साल 2005 में वे स्थायी जज नियुक्त हुए। जस्टिस गवई ने 15 वर्षों तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की पीठ में अपनी सेवाएं दीं।

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