दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High court) ने राष्ट्रीय राजधानी की उपभोक्ता अदालतों (consumer court)की दयनीय स्थिति पर रेखा गुप्ता सरकार(Rekha Gupta) को कड़ी चेतावनी दी है. गुरुवार, 15 मई को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से इस मुद्दे पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.
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एक याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष उपभोक्ता अदालतों की दयनीय स्थिति का मुद्दा उठाया. याचिका में उन्होंने जिला उपभोक्ता अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (VC) की सुविधा, पेयजल और शौचालय जैसी आवश्यक बुनियादी सुविधाओं को तुरंत उपलब्ध कराने का आदेश देने की मांग की.
17 सितंबर को होगी सुनवाई
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दिल्ली सरकार को तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही, याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है. इस मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी.
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली हाईकोर्ट में वकील एस.बी. त्रिपाठी ने जिला अदालतों की दयनीय स्थिति को देखते हुए एक याचिका प्रस्तुत की. उन्होंने आरोप लगाया कि कोविड-19 के बाद से दिल्ली की 10 जिला उपभोक्ता अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की सुविधा पूरी तरह से समाप्त कर दी गई है.
याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट से यह कहा गया था कि इससे न केवल वकीलों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि आम उपभोक्ताओं के लिए भी अदालतों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है. एक आरटीआई के जवाब में तीन उपभोक्ता आयोगों ने स्पष्ट किया कि उनके पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है, और इसके लिए 5G नेटवर्क की आवश्यकता है.
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में यह उल्लेख किया गया है कि जिला उपभोक्ता अदालतों में अधिवक्ताओं और आम जनता के लिए न तो शुद्ध पेयजल की व्यवस्था है और न ही शौचालयों की. न्यायालय के पूर्व आदेशों के बावजूद इन आवश्यक सुविधाओं की गंभीर अनदेखी की जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों को अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.
याचिकाकर्ता एस.बी. त्रिपाठी ने यह अनुरोध किया है कि सभी जिला उपभोक्ता आयोगों में न्यायिक अधिकारियों की तात्कालिक नियुक्ति की जाए. इससे लंबित मामलों की सुनवाई नियमित रूप से हो सकेगी और न्यायिक प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आएगी.
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